Sunday, October 2, 2016

आत्मावलोकन की आवश्यकता:

मित्रों आज हमे आत्मावलोकन की बहुत अधिक आयश्यकता है. हर बात के लिए हम नेताओं को और सरकार को दोषी ठहरा देते हैं परंतु अपने स्वयं के कार्यकलापों पे ध्यान नहीं देते. आज हमारा प्यारा राष्ट्र बहुत अधिक तेजी से शुभ परिवर्तन की ओर अग्रसर है और ऐसे में विपदाओं, विघ्नों और संकटों का राह में आना स्वाभाविक है. ऐसा ही हो भी रहा है. पर हम हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार मान के स्वयं आराम से बैठ के सरकार के कार्यकलापों का विश्लेषण करते हैं, कभी ये देखने का प्रयास नही करते कि इस सब में हमारा स्वयं का योगदान कितना है. क्या हम इसमें सरकार की कुछ मदद कर सकते हैं. लिखने के लिए या कहने के लिए हमारे पास बहुत बड़े बड़े तर्क और कुतर्क हो सकते हैं पर क्या असल में हम वही हैं जो दिखाते हैं औरों को. बहुत सारे मामलों में इसका नकारात्मक उत्तर ही मिलेगा. हर दूसरा इंसान मुह में राम बगल में छुरी लिए घूम रहा है. बल्कि सौ में से अस्सी ऐसे हैं. ऐसे में हम सरकार की या किसी भी दल के कैसे भी नेता की बुराई किस मुह से करते हैं. हमे तो सब अच्छा चाहिए, हमारे साथ कभी बुरा न हो और न ही हमे कभी अन्याय का सामना करना पड़े पर जब यहीं कर्ता के रूप में हम स्वयं होते हैं तो सब बातें किताबी लगने लगती हैं. तब मात्र अपना स्वार्थ साधना ही न्याय दिखता है, उचित दिखता है.

माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा कि स्वच्छता अपनाओ. बच्चों ने अपना ली पर बड़े आजतक नहीं अपना पाए. अभी भी लोगो को सड़क पे कचरा फेंकते हम देखते हैं और वो भी दिली जैसे शहर में. बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों में चलने वाले इसमें सबसे आगे हैं. और यही सरकारी नीतियों पे बड़े बड़े वातानुकूलित कमरों में बैठ के और कभी कभी तो टीवी के चैनल्स पे बैठ के अपनी टिप्पड़ियां देते हैं. स्वयं के आचरण पे उनका कोई ध्यान नहीं और सरकार को सीख देते हैं. हमे ऐसे लोगो को रोक रोक के समझाना है कि ये राष्ट्र जितना हमारा है उतना ही उनका भी है सो जिम्मेदारियां भी सबकी बराबर हैं.

चीन हमारे लिए नित नई परेशानियां उत्पन्न करता रहता है और सरकार हर स्तर पे उससे टकरा रही है पर हम हैं कि मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि चीनी सामान का बहिस्कार शुरू कर दें. कहते हैं कि दवाइयों में पड़ने वाली 90 प्रतिशत सामग्री चीन से आती है, क्यों.? क्या संसार में और कहीं नहीं मिलतीं ये. पर हाँ चीन से सस्ती नहीं मिलती होंगी और हमारे व्यापारी तो सदा से पैसे के गुलाम रहे हैं, वो भला राष्ट्र हित में सस्ता माल हाथ से क्यों जाने दें. फिर दवाई बनाने वाले तो इंसान भी नहीं हैं. वो अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए नई नई बीमारियां भी इज़ाद कर रहे हैं और फिर उसकी दवइय्याँ बेच बेच के धन इकठ्ठा कर रहे हैं. कितनी ऐसी बीमारियां हैं जो आज तेजी से समाज में फ़ैल रही हैं और जिनका आयुर्वेद में पूर्ण निदान है, ये अंग्रेजी दवा वाले लोग चाहे वो डॉक्टर हो या इससे सम्बंधित कोई भी और, यही कहते मिलेंगे कि इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता.. बस जिंदगी भर दवाई लेते रहिये क्योंकि इसी में उनका फायदा है. पूरी तरह आप ठीक हो जायेंगे तो उनकी दवाई उतनी नहीं बिकेगी जितनी कि वो बेचना चाहते हैं. उच्च रक्तचाप हो या मधुमेह हो, इस सबका आयुर्वेद में पूर्ण निदान है, ये आयुर्वद के सही उपचार से हमेशा के लिए समाप्त हो सकती हैं पर इसमें समय लगता है और इस सबका सटीक और पूरा ज्ञान हम भूल चुके हैं पर अब उसे पुनः जीवित किया जा रहा है.

खैर बात हो रही थी आत्मावलोकन की. हम चार लोगो के बीच में बड़ी बड़ी बातें करते हैं पर जब उन्ही बातों को यथार्थ में जीवन में उतारने की बारी आती है तो सौ बहाने होते हैं हमारे पास उससे बचने के. हम सरकार को कोस रहे हैं कि वो चीन का माल भारत में इम्पोर्ट होना बैन क्यों नहीं करती पर हम स्वयं उसे खरीदना बंद नहीं करेंगे. सुबह शाम चीन को पानी पी पी के कोसेंगे पर भीतर ही भीतर ये पता लगा रहे होते हैं कि यार चाइना मेड कोई LED टीवी आया है क्या 52" का, बीस तीस हज़ार में ही मिल जायेगा. बाजार से कोई भी वस्तु खरीदते समय दुकानदर से ये नहीं बोलते कि भैया चाइना मेड नहीं होना चाहिए. मैं बोलता हूँ और हर चीज में बोलता हूँ इसीलिये ठोक के यहाँ लिख रहा हूँ. सभी ऐसे कब सोचेंगे. मित्रों जिस दिन हम सब एक होके आचरण करने लगे, विश्व की कोई अर्थव्यवस्था हमसे बड़ी नहीं होगी और हमसे अधिक विश्व में कोई शक्तिशाली नहीं होगा. लिखने को तो ऐसी बातों पे पन्ने पे पन्ने भरे जा सकते हैं पर क्या फायदा. सोचना तो हम सभी को है. अपने तुच्छ स्वार्थों को छोड़ के समाज के हित के बारे में, राष्ट्र के हित के बारे में सोच के तो देखिये, आपकी आत्मा स्वयं आपकी पीठ ठोकेगी, रात में नींद बहुत अच्छी आएगी और सच में सबसे आँख से आँख मिला के बात कर पाओगे. चार पैसे बचाने या कमाने के लालच में अपनी ही बहु बेटियों की इज़्ज़त खतरे में मत डालो दोस्तों. अभी भी समय है चेत जाओ,अन्यथा बहुत देर हो गई तो हाथ मलने के सिवा कुछ हाथ में रह नहीं जायेगा. हम जैसे तो शहीद हो चुके होंगे सो हमे कोई चिंता नहीं पर जो बचेंगे उनका क्या होगा सोच के ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं. तालिबानियों का और ISI का विडियो नित देखते ही हो.

इसे पढ़ के यदि चार लोग भी संकल्प ले लेंगे कि आज के बाद चीन का बना माल नहीं खरीदेंगे और अपने मित्रों को भी नहीं खरीदने देंगे हम समझेंगे कि ये कुछ मिनट जो हमने इसे लिखने में व्यतीत किये हैं व्यर्थ नहीं गए. हम सब माँ भारती की संतान हैं. इसकी आबरू की रक्षा करना मात्र सैनिको का काम नहीं है और न ही मात्र सरकार का है, अपितु हम सबका है. जागो दोस्तों, हम संगठित हो गए तो सब दुःख दर्द दूर हो जायेंगे. तुच्छ स्वार्थों को छोड़ के आगे बढ़ो और चीन के माल की वैसे ही होली जलाओ जैसी कि स्वतंत्रता सैनानियों ने विदेशी माल की, आज़ादी से पहले जलाई थी. चीन को पता चलना चाहिए कि भारतीय इतने मुर्ख नहीं कि वो कुछ भी करता रहे और हमे लूटता भी रहे, हम चुप रहेंगे.? नहीं..... चीन का सबसे बड़ा बाजार हम हैं.. यहाँ वो अपना कचरा भी बेच लेता है.. उसकी अर्थव्यवस्था को हमारा बाजार खोने से बहुत बड़ा धक्का लगेगा.

इस पोस्ट को राष्ट्र हित में अधिक से अधिक शेयर भी कीजिये जिससे कि अधिक से अधिक भारतीय इसे पढ़ सकें और संकल्प ले सकें.

जय हिन्द, जय भारती, इंक़लाब ज़िंदाबाद.... वन्दे मातरम..... अंत में सभी को नवरात्रों कि बहुत बहुत बधाई. मनोज कुमार पाण्डेय

Sunday, September 11, 2016

चचा शाकिर की कल्लो...

हम सुबह सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार खोलते ही जा रहे थे की चचा शाकिर की मिमियाहट भरी आवाज़ सुनाई दी... अरे भाई पाण्डेय जी.... अंदर हैं क्या..... हम बोले कि हाँ चचा अंदर ही हैं... चले आइये बेतकल्लुफ़.... हम पूरे के पूरे यहीं हैं..... चचा धड़धड़ाते हुए से अंदर दाखिल हुए और सामने वाले सोफे पे पसर गए... हमने देखा कि हमेशा कुर्ते पैजामे में रहने वाले चचा लुंगी पहने ही चले आये..... चेहरे पे बड़ी गंभीरता सी नज़र आ रही थी... चूँकि हम अक्सर चचा से मजाक करते रहते हैं सो फिर से एक छोड़ दिया.... क्यों चचा चची से लड़ के आ रहे हो क्या.... या चची ने आज मुर्गी छोड़ दी ऊपर..... बस चचा भड़क गए...... एकदम मरियल सी बाहें फड़फड़ा के बोले..... अमा पाण्डेय जी तुम चुहल भोत कत्ते ओ, औ ए हमे अच्छा नई लगता... अमा तुम्हायी चची काहे हमपे गुर्रायेगी... हमने कौन सी उनकी सुरमेदानी में कोयला मिलाया हे....... अरे तो चचा फिर क्या हो गया.. ये सुबह सवेरे ऐसे मुह लटकाये घूम रहे हो... कोई गलत शलत सपना तो न देख लिया इस उम्र में.... कहीं कोई पुरानी माशूका दिख गई हो.... हमने फिर चुहल करी...... अरे चचा तो एकदम पतलून के बाहर हो गए.... मियां तुम्हायी यई बात हमे बिलकुल अच्छी नई लगती है... आदमी का मूड शूड देखते नई हो और शुरू हो जाते हो...... हमाई तो हियाँ जान पे बनी है और तुम्हे मजाक की सूझ रई  हे....

हमने बात संभाली.. अरे चचा नाराज काहे होते हो... बैठो न... श्रीमती जी को आवाज दी कि चचा के लिए एक गरमा गरम चाय भेजो..... चचा बैठे और बड़े उदास सुर में बोले..... पाण्डेय जी का बताएं... हमाई कल्लो कहीं ग़ुम हो गई है... या कोई खोल ले गया रात में....... अरे कैसे हुआ और कौन है ये कल्लो... कोई रिश्तेदार है क्या आपकी क्योंकि घर में तो कोई कल्लो है नहीं आपके... और बांध के काहे रक्खा था... हमने पूछा.... चचा फिर भड़क गए... अमा रिश्तेदार होगी आपकी... हमाए अभी इत्ते बुरे दिन नई आये कि भेड़ बकरियां हमाई रिश्तेदार बनने लगें.... ओह तो आपकी बकरी का नाम कल्लो है.....खैर आगे बढ़िए.. हमने कहा...

फिर चचा तफ्सील से बताने लगे कि रात तो बड़ी मजे में थी... कोई मार पीट भी नहीं हुई थी कि खूंटा तुड़ा के भाग जाती... सुबह जुम्मन की अम्मा (यानी हमारी चची) ने हमे भड़भड़ा के उठाया कि कल्लो कहाँ गई... हमने कहा कि कहाँ जाएगी.. बहार खूंटे में तो बंधी थी... बो बोली तो का हमाये दीदे फूट गए जो हमे नई दिखाई दे रई ... सच्ची सच्ची बताओ तुम्हे खुदा का वास्ता हे........  तुमने रात में किसी को बेच तो न दी..... और पाण्डेय जी बिना हमाई सुने रोवुन लगी वा तो..... हाय  बिना कल्लो के अब का होगा... न चाय मिलेगी न बच्चों को दूध मिलेगा... हाय करमजली हूँ मैं जो ऐसा शोहर मिला... आग लगे हमाये अब्बू को जो इस निखट्टू के पल्ले बांध गए हमे........ हम मिमियाए, क्योंकि उसकी ऐसी सूरत के आगे हम मिमियाई पाते हैं पाण्डेय जी...... हंसो मत पाण्डेय जी... आगे सुनो... हम बोले... अरे अरे बेगम का अनाप सनाप बके जा रई हो.. हुआ का ये तो बताओ.... हमने कल्लो को कहीं नई बेचा.. रात में देखा था कि बाहर बंधी थी..... चची बोलीं अब नई है हुआ...... खूंटा भी ठीक ठाक है... रस्सी समेत गायब है कल्लो..... हमे नई पता.. ढूँढ के लाओ.. चाहे जहा से लाओ.... नहीं लाये तो घर मति आइयो...... समझ लो... जुम्मन, पप्पन, कल्लन सबकी कसम खा के बोल रै हैं कि अगर कल्लो को न लाये तो मैं तुम्हे तुम्हारा ही मरा मु दिखाउंगी.... भैया पाण्डेय जी हम उसी बखत लुंगी संभाल के उठे और बहार दौड़ लिए की इसका का भरोसा... कहीं अभी न हमे अल्ला ताला के पास भेज दे.... पागल औरत हे... हमाई अम्मा का भी दिमाग ख़राब हो गया था कि उम्र में हमसे पांच साल बड़ी ऐसी बौड़म औरत व्याह दी हमसे..... जिंदगी भर से बस सुनते ही आ रै है उसकी..... लगता है उसे सुनाने की तमन्ना लिए हम  इंतकाल फरमा जायेंगे.... काश हम भी कभी उसे तबियत से सुना पाते...... हमने टोका.. चचा मुद्दे पे आओ... कल्लो की बात कर रहे थे आप....

चचा जैसे सपने से जगे और बोले... कि अरे हाँ बात तो कल्लो की चल लई थी पाण्डेय जी.... बड़ा ढूंढा  कम्बखत मारी को पर न मिली कहीं... अब घर केसे जाएँ.... वो जिन्नातों की अम्मा हमाये जनाजे का पूरा इंतज़ाम करे बैठी होगी....... हमने तो मजनू के बकरे को भी चेक कल्लिया कि सुसुरा कही भगा न ले गया हो हमाई कल्लो को... पर बो तो बड़े ठाट से मजनू के चौपाल में बंधा मूछे ऐठ रिया था........

हमने पूछा कि चचा इसमें हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं..... आप तो जानते ही हैं कि बकरी हमने कभी पाली नहीं और न ही उनकी साइक्लोजी समझते हैं...... हम क्या सहायता करें आपकी..... चचा चाय की चुश्की छोड़ के एकदम से हमारे पास खिसक आये और बड़े ख़ुफ़िया अंदाज़ में हमसे हमारा कान आगे करने को कहा... हमने कान आगे किया तो चचा फुसफुसा के बोले.. पाण्डेय जी आप बताओ न बताओ पर हमे सब पता है.. और बोल के मुस्कुराने लगे.... अब चिंता की बारी हमारी थी कि चचा को ऐसा हमारे बारे में क्या पता चल गया जो इत्ता मुस्कुरा रहे हैं.... हमने शंकित नज़रों से उन्हें घूर के पूछा कि चचा क्या पता है आपको..... और हम घबराये भी अंदर ही अंदर कि पता नहीं कौन सा राज़ खोल दें चचा हमारा..... चचा फिर दाहिनी आँख दबा के बोले कि अरे हमे सब पता है... पर आप चिंता न करो हम किसी को बताएँगे नहीं.... अब हमे झल्लाहट होने लगी थी... हमने थोड़ा कड़क के पूछा कि चचा पहेलियाँ न बुझाओ.. साफ़ साफ़ कहो क्या पता है..... चचा हमारा अंदाज देख के सकपका से गए और तुरंत बोले.. अरे न न पाण्डेय जी... आप तो खाम खां गरम हुए जा रहे हैं... ये तो बड़े फ़कर की बात है... सबकी ऐसी किस्मत कहाँ जैसी कि आपकी हे..... हमने फिर थोड़ा नरम होते हुए पूछा कि चचा साफ साफ़ बात करो न... हमे जाना भी है देर हो रही है....

चचा मुद्दे पे आ गए और बोले कि हमने सुना है कि आपकी सरकार में बड़ी पकड़ है..... और शातिराना तरह से फिर मुस्कुराये चचा... हमने हैरानी से पूछा कि किसने कहा आपको... एकदम बकवास है ये.... चचा फिर फुसफुसा के बोले कि अरे हमसे न बनो आप, हमे सब पता हे.... आपकी खूब जान पहचान है लखनऊ में.... और दिल्ली में भी....... हमने पीछा छुड़ाने की गरज़ से कहा कि है तो...... तो चचा बोल पड़े तो हमाई मदद कर दो न... कहे इत्ती बाली उमर में हमे खर्च करवा रै हो..... वो जललादिनी एकदम न सोचेगी हमे उड़ाते हुए... अभी उमर क्या है हमाई पाण्डेय जी.... आठइ तो बच्चे हैं अभी हमाए ..... मैंने हैरानी से पूछा कि चचा और क्या शतक बनाना है... चचा बोले कि अरे शतक नई पर वो सामने वाले नूरा से एक ज्यादा तो करेंगे ही.... हमने कहा चचा होश में आओ.. नूरा के बारह बच्चे हैं और ऐसे ही चलता रहा तो भी उसके हमेशा आपसे चार बच्चे ज्यादा ही रहेंगे..... देश का भी ख्याल करो और अपने इस नामाकूल मुक़ाबले में आबादी न बढाओ..... सही है चची तुम्हे खर्च ही कर डालें तो ही सही है... चचा भड़क गए... का बोला पाण्डेय जी तुमने... हम तो तुम्हे अपना यार समझते थे और तुम हमाई पीठ में खंज़र भोंकने की तयारी कर रहे हो... एक तो वैसे ही तुम्हायी वजह से रोज़ तुम्हायी चची की सुनते हैं...... हमारी वजह से क्यों... हमने कौन सा आपके आँगन में पीपल उगाया हुआ है... चचा आँखें गोल कर के बोले कि अरे दो साल पहले ये भाजपा को वोट तो दिलवा दिया था   जिससे हमाई मारुती कार गैराज में बंद पड़ी है क्योंकि 15  साल से ज्यादा पुरानी हो गई है... कसम से तुम्हायी चची को एक दिन भी उसपे घुमा न सके और ऊपर से ये रोज बढ़ती महंगाई... फिर रेल का किराया भी बढ़ा दिया इस सरकार ने..... हमने कहा चचा तुम पैसेंजर गाड़ी में चलते हो.. ज्यादा हो गया तो एक्सप्रेस की टिकेट कटा लेते हो... किराया तो शताब्दी, राजधानी आदि का बढ़ा है उससे आपको क्या........ चचा बोले लो जी हमे क्यों नई.... बड़े दिनों से ससुरालियों पे जोर बना रक्खा था कि इस बार ससुराल तभी आएंगे जब राजधानी का टिकेट भेजोगे... वो भेजने ही वाले थे कि सुसुरा ये कानून आ गया... अब बेहया लोग देखना.. अभी बहाना बना देंगे कि हम भेजते तो पर अब बहुत महंगा हो गया है.... हमने कहा कि चचा तुम्हे जाना पड़ोस में है और राजधानी के टिकेट पे आँख गड़ाए हो.... दिल्ली से अलीगढ दूर ही कितना है और सारी राजधानी वहाँ रूकती भी नहीं.... चचा थोड़ा चौड़े हो के बोले.. तो क्या हुआ.. लोगो से कहते तो कि हम भी राजधानी में बैठे हैं... अब वो भी नहीं हो पायेगा..

हमने पीछा छुड़ाने की गरज़ से कहा कि ठीक है चचा अब आप जाओ और हमे भी तैयार होने दो... चचा उठ खड़े हुए.. दरवाजे तक जा के दौड़ते हुए से वापस आये... यार पाण्डेय जी तुम तो हमाये बहोत बड़े वाले दुश्मन निकले...... हमे मरने के लिए भेज रै थे क्या.... कल्लो तो मिली नई
अभी..  हमने कहा कि कल्लो यहाँ छुपी है जो यहाँ मिलेगी.. जा के कहीं ढूंढिए.... चचा कान के पास आ के फिर बोले कि पाण्डेय जी जरा पुलिस से कह दो न कि कल्लो ढूंढ दें..... हम हैरान हो गए कि चचा ने ये बात कही कैसे ..... हम भी फट पड़े..... क्या समझते हो आप चचा... पुलिस इसी के लिए बैठी है.. और कोई काम नहीं पुलिस के पास... चचा छड़ी नचा के बोले कि क्यों भाई हमाई बकरी कुछ  नई है क्या... उनकी भैंस खोई थी तो पूरे जिले की पुलिस लग गई थी ढूंढने में और खोज के लाई थी... हमाई तो छोटी सी कल्लो है... कसम से पाण्डेय जी आज के बाद दिखाई न देंगे आपको और आप भी हमे याद कर कर के टसुए बहाओगे अगर हम कल्लो को ले के घर न गए तो...... बोल दो पुलिस से.... आपकी तो सुनते हैं सब... हमाई जान बच जाएगी पाण्डेय जी... अब ये कल्लो का मामला नई है हमाई  जान का है...... हमने उन्हें बहुत समझाया कि भई वो मंत्री की भैंस थी... उनका तो चूहा भी पुलिस ढूढ़ लाती... पर चचा नहीं मान रहे थे... तो हमने टालतें हुये कहा कि ठीक है चचा अभी जाते हुए हम पुलिस से कह जायेंगे और चची को भी हम बोल देते हैं कि आपसे कुछ न कहेंगी.. आप आराम से घर जाइये..... चचा उम्मीद के चिराग जलाते हुए अपने घर को लौट गए और हम सोचने लगे कि शाम को क्या बहाना मारेंगे चचा को.... भगवान करे तब तक उनकी बकरी मिल जाये उनको... पुलिस से कितनी बड़ी उम्मीद लगा ली है चचा ने..... अरे ये तो बकरी है कहीं चचा का लख्ते ज़िगर भी खो जाता तो ये पुलिस दो चार दिन सुनने वाली नहीं है.... मंत्री का चूहा भी राजा होता है.... आम जनता का जीवन भी उनसे छोटा है... कब हम सही मायने में आज़ाद होंगे.... मनोज कुमार पाण्डेय...

आरक्षण और विकास - दो धुर विरोधी तत्त्व

दोस्तों यदि आरक्षण रहेगा तो विकास हो ही नहीं सकता.. हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी क्या कहना चाहते हैं आरक्षण का समर्थन करके कि आरक्षण की व्यवस्था बनाये रखते हुए हम विकास करेंगे..?.... असंभव ... ऐसा हो ही नहीं सकता.... जब तक हर पद पर योग्य अधिकारी और कर्मचारी नहीं बैठा होगा विकास संभव ही नहीं है.... हम आरक्षण भी बनाये रक्खेंगे और विकास भी करेंगे... ये तो बच्चों में रेवड़ी बांटने वाली बात हो गई...... अयोग्य कर्मियों को रख के किसके विकास की बात हो रही है......

आरक्षण हो.. पर मात्र पढ़ाई में... और उसमे भी पढ़ाई के संसाधनों में न कि परीक्षा परिणामो में... उसके आगे कहीं भी आरक्षण नहीं होना चाहिए.... ये आत्मघाती व्यवस्था है और जितने दिन भी चालू रहेगी... सिर्फ खोना ही खोना है.. पाना कुछ भी नहीं.....

आरक्षण समर्थक बड़े जोर शोर से कहते हैं कि आरक्षण का विरोध क्यों करते हो.. जांत पांत का क्यों नहीं करते.... मैं उन सब से पूछना चाहता हूँ कि एक विस्तृत रूप में देख के बताइये कि जांत पांत रह कहा गया है.... सन 1985 तक ही करीब करीब ख़तम हो गया था.... गद्दार वी पी सिंह यदि मंडल कमंडल न लाया होता तो आज तक तो जांत पांत इतिहास की बातें बन चुका होता..... उस कमीने इंसान ने अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण पूरे भारत को नफरत की आग में झोंक दिया... कितने युवा उस समय आत्मदाह कर के मर गए... कितने आपस में लड़ के मर गए...... तभी वो कुत्ता भी सड़ सड़ के मरा... ब्लड कैंसर से मौत हुयी उस खानदानी गद्दार की.....

तो भाईयों जांत पांत तो तुम लोग बनाये हुए हो.... अपने आप को दलित कहला कर कौन इसका फायदा उठा रहा है... सवर्ण..? कदापि नहीं... दलित ही बड़े शान से नौकरी के और अन्य सरकारी सुविधाओं के फॉर्म पे अपने आप को दलित लिखते हैं और पाने लगते हैं सरकारी भीख....

ऐसा नहीं है कि सारे दलित ऐसे हैं... दलितों में आज भी बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो आरक्षण का विरोध करता है क्यों कि वो सारे कर्मठ हैं... उन्होंने बिना आरक्षण का लाभ लिए हुए अपने आप को समाज में प्रतिष्ठित किया है.... खूब मेहनत की है और आज बहुत ऊँचे ऊँचे पदों पे हैं या बड़े बड़े व्यवसायों में लगे हैं...... उनके दुःख को समझो क्योंकि उनकी मेहनत की कोई कदर ही नहीं रही.... जो उन्हें ठीक से जानते हैं वो भी उनकी पीठ पीछे यही कहते हैं कि आरक्षण कोटे का इंसान है... यानी उनकी सारी मेहनत इस आरक्षण नामक जिन्न के पेट में पहुँच गई.... क्या दोष है उनका..? सिर्फ इतना कि उन्होंने मेहनत की और आरक्षण की बैसाखी के बिना अपनी मंजिल प्राप्त की.... आज वो कितना भी कहें कि उन्होंने कभी आरक्षण का लाभ नहीं लिया.. आम जनता नहीं मानती... उनको भी सब उसी हेय दृष्टि से देखते हैं जैसे कि बाकी सभी आरक्षण पाने वालो को देखते हैं..... उन्हें न्याय चाहिए..... आरक्षण का समर्थन सिर्फ वही करते हैं जो अकर्मण्य हैं... जिन्हें बैठे बिठाये हलुआ चाहिए.... काम न करना पड़े, मेहनत न करनी पड़े और दोनों हाथों में लड्डू आ जाएँ.. ऐसी सोच वाले ही आरक्षण का समर्थन करते हैं... और नेताओं को तो चाहिए यही क्यों कि यदि आप आपस में बँटते नहीं रहेंगे तो उनकी नेता गिरी कैसे चलेगी.....

आरक्षण का जो भी कारण दिया जाता है उसे कुछ कुछ समझने वाले भी इस समाज में अब अधेड़ की उम्र पार कर गए हैं और थोड़े वर्षों बाद परलोक सिधार जायेंगे... उसके बाद की पीढ़ी आरक्षण का कारण नहीं समझती क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी जांत पांत का भेद भाव देखा ही नहीं... तो वो इसका खामियाजा क्यों भुगतना चाहेगी... और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि फिर से सडकों पे खून बहेगा.... जब ज्यादा त्रस्त हो जायेंगे सामान्य वर्ग के बच्चे कि मेहनत कर कर के थक जायेंगे और मलाई आरक्षण वाले ले जायेंगे और वो बेचारे ठूंठ से बैठे रह जाएंगे तो उठ खड़े ही होंगे कि इस पार या उस पार..... तब क्या होगा..... अपने ही लोग अपने ही लोगो का रक्त बहाएंगे और ये नेता तो उसपे भी राजनीति की रोटियां सेकेंगे......

ऐसा होने से पहले ही आरक्षण समर्थक यदि चेत जाएँ तो अच्छा होगा क्यों कि यदि रक्त पात हुआ तो जांत पांत और ज्यादा गहरी पकड़ बना लेगा समाज में और फिर सदियों तक इसका इलाज़ नहीं हो पायेगा..... आरक्षण से किसी का भला नहीं हुआ है... जिन्होंने इसका सहारा लिया है वो भी अपमान का घूंट गाहे बगाहे सहते ही रहते हैं..... और इस सबसे राष्ट्र का विकास प्रभावित होता है.... आप भी हमारे साथ मिलिय और सरकार से बोलिये कि सही व्यवस्था प्रदान करें.... गरीबों को मुफ्त शिक्षा और पुस्तकें दे और उसके बाद का सारा आरक्षण समाप्त करें... तभी एक सर्वरूप से विकसित भारत का उदय हो पायेगा... आधे अधूरे भारत के विकास का कोई अर्थ नहीं है.... किसी भी कोने में पड़ी गरीबी और अव्यवस्था हर तरह के विकास को निगल ही जाएगी...

माननीय प्रधानमंत्री महोदय को इसपे विचार करने की बहुत अधिक आवश्यकता है..... नहीं तो वो दिन दूर नहीं कि उनकी इतनी अथक मेहनत के बावजूद राष्ट्र फिर उसी गन्दगी में धंस जायेगा जहा से वो उसे निकालने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं.... गृह युद्ध छिड़ जायेगा और उनके विरोधी मजे लेंगे.. सरे आम रक्तपात होगा और इस सबका कलंक प्यारे प्रधान मंत्री जी के सर होगा.... उनके विरोधी तो चाहते यही हैं..... क्योंकि और किसी तरीके से वो उनसे जीत नहीं पा रहे है तो दंगा और रक्त पात ही सही..... दोस्तों इसे इतना शेयर करें कि ये आवाज़ प्रधानमंत्री जी के कानो तक पहुँच पाए और वो सही बात समझ सकें..... जय हिन्द.. जय भारती...... मनोज कुमार पाण्डेय

Sunday, August 28, 2016

भारत माता का दर्द - एक सचेतक

चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी... कैसे पैसों का इंतज़ाम करें . बिटिया के पेपर होने वाले हैं.. एग्जामिनेशन फी भरनी है... बता रही थी कि इस साल दोगुनी हो गई है... किसी तरह बेटे के स्कूल के जूतों के लिए पैसों का प्रबंध किया था पर शायद वो इस फी में खप जायेंगे.... बेटे को फिर वही फटे तल्ले का जूता पहन के जाना पड़ेगा.... जो ऊपर से जूता दीखता है पर नीचे से बेटा दरअसल नंगे पैर ही धरती पे चल रहा होता है.... वो तो हमने अपने बच्चों को परवरिश ऐसी दी है कि वो आजकल के बच्चों की तरह हीन भावना नहीं पालते पर उनकी माँ का क्या करें.... सुबह शाम कान खाती है कि बच्चों के लिए ये लाना है वो लाना है.... कैसे बताऊँ कि तनख्वाह सरकारी कर्मचारियों की बढ़ी है हम प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले लोगो की नहीं..... उसी अनुपात में लाला लोगो ने महंगाई भी बढ़ा दी है...... हमारी सुनता कौन है..... न सरकार.. न लाला और न ही कंपनी का मालिक...... इस बार बोनस भी नहीं मिलेगा ... मालिक बोल रहा था कि बड़ी बड़ी कंपनियों के हमारे धंधे में आ जाने से मुनाफा ही नहीं हुआ है तो बोनस कहा से देंगे... क्या करूँ कहाँ जाऊं कुछ समझ में नहीं आ रहा.... ये तो अच्छा हुआ कि बीबी की बात न मान के बच्चों को सरकारी स्कूल में डाला.. कहीं गलती से किसी निजी स्कूल में डाल दिया होता तो आज तो घर का सारा सामान भी बिक गया होता उन्हें पढ़ाने में.... सब्जी लेने भी ऐसे जाता हूँ कि जैसे अपनी परीक्षा का रिजल्ट लेने जा रहा हूँ... बड़ी हिम्मत कर के भाव पूछता हूँ..... सरकार कोई ऐसा बीमा ही बनवा दे जो भाव सुन के मरे लोगो के घर वालों को कुछ दे दे....
बड़ी मुश्किल में नींद आयी कि अचानक दरवाजे पे दस्तक हुयी.... आवाज़ बहुत धीमी सी थी सो सोचा कि कुछ और होगा और पुनः सोने का प्रयास करने लगे कि तभी फिर से हलकी सी दस्तक सुनाई दी.... समझ में नहीं आया कि इतनी रात में कौन हो सकता है जो चोरों की तरह एक दम दबी छुपी सी दस्तक दे रहा है..... कहीं सच में कोई उचक्का बदमाश तो नहीं... फिर अपनी सोच पे ही हंसी आयी की उचक्का बदमाश यहाँ क्या लेने आएगा...बढ़ के दरवाजा खोला तो देखा कि सीढ़ियों पे एक जर्जर सी काया पड़ी है जो बड़ी मुश्किल से चेहरा उठा के मुझे देखने का प्रयास कर रही है..... कौन है ये.. सोच के पूछा की कौन हैं आप..... थोड़ा और ध्यान से देखा तो स्त्री जान पड़ी.... हमने पूछा.. माता जी कौन है आप और क्या काम है..... स्त्री इशारे से बोली कि अंदर ले चलो और पीने को कुछ पानी दे दो..... हमने सहारा दे के उन्हें अंदर ला के खाट पे बिठाया और तुरंत पीने को पानी दिया.... बीबी को जगाया नहीं कि पता नहीं क्या क्या बोलने लगेगी आधी रात को.... लाइट में स्त्री को ठीक से देखा... बहुत ही ज्यादा बूढी औरत थी... कपडे तो नए से लग रहे थे और चेहरे पर मेकअप के निशान भी दिख रहे थे कि जैसे किसी ने जबरदस्ती उसका बुढ़ापा छुपाने की कोशिश की हो.... हमने उसे थोड़ा समय दिया... पानी पी के जब वो थोड़ा संयत सी दिखाई देने लगी तो हमने पुनः पूछा कि माता जी आप कौन हो.. कहा से आयी हो.. और मुझसे क्या काम है...... वो बोली तो लगा कि उसकी आवाज़ कोसों दूर से आ रही है... इतनी निर्बल आवाज़.?.... हमने ध्यान से सुना... वो बोली.. बेटा मैंने सुना है कि तुम समाज के लिए कुछ न कुछ लिखते रहते हो सो आज मैं भी अपना दुखड़ा ले के तुम्हारे पास आयी हूँ... मेरी असलियत लिखो जिससे लोग मेरा सच जान पाएं और मेरे इस नकली चेहरे के पीछे का असली चेहरा देख सकें..... हमने उनसे कहा कि माता जी मैं कोई लेखक नहीं हूँ... ये तो यूँ ही फेस बुक का कीड़ा जब जब काटता है तो कुछ न कुछ बकवास लिख के खुजली मिटाने की कोशिश करता हूँ... वो बोली की बेटा इतना ही बहुत है... कुछ लोग तो पढ़ेंगे और जानेंगे.... मैंने कहा की ठीक है आप तफ्सील से अपनी बात सुनाइए हम कल ही फेस बुक में छाप देंगे... मन ही मन हम प्रसन्न हुए कि दोस्त लोग रोज़ कुछ न कुछ पोस्ट किये जा रहे हैं और हमे कोई मुद्दा ही नहीं मिल रहा था कई दिनों से पोस्ट करने को.... सारी भूख प्यास भी धीरे धीरे ख़तम सी होने लगी थी इसके अभाव में..... अपनी गरीबी में एक यही तो है जो बादशाहत का एहसास कराती है.... आज कुछ मसाला मिलेगा लिखने को... सो हम तुरंत अपने हथियार... यानि कॉपी पेन ले के तैयार हो गए.....
औरत ने मरी आवाज़ में बोलना शुरू किया... बेटा मुझपे साल दर साल परायों का कब्ज़ा रहा..... करीब सत्तर साल पहले मेरे बेटे मुझे छुड़ा के लाये....... लाते ही मेरा दाहिना हिस्सा थोड़ा सा काट दिया गया ये बोल के कि उस हिस्से में गन्दगी फ़ैल गई है जबकि वो हिस्सा आज भी महफूज है.. वो अलग बात है कि वो तो मुझसे भी ज्यादा मरणासन्न स्थिति में है..... मुझे बुढ़िया की बातें अनाप सनाप लगने लगीं.... मैंने टोका बीच में.. माता जी आप तो पूरी की पूरी दिखाई दे रही है... किस हिस्से की बात कर रही हैं... वो थोड़ा गुस्से में बोली... चुपचाप सुनो.. टोको नहीं बीच में... सब समझ जाओगे खुद ही...हमने कहा कि ठीक है.. इरशाद... ठोकिए आगे....हम लपेटते हैं .... उसने फिर शून्य में नज़रें टिका दीं और बोलने लगी .... आवाज़ फिर उसी तरह किसी कुएं के अंदर से आती प्रतीत होने लगी.... हम कुछ डर भी गए कि कहीं कोई चुड़ैल या पिशाचिनी तो नहीं है.... हनुमान जी का स्मरण किया और हिम्मत जुटा के सुनने लगे.. क्योंकि फेस बुक के लिए कुछ मिल रहा था .. ये लालच हमारे डर पे हावी हो गया..... हमने सुना वो कह रही थी.... मेरे हिस्से करने के बार मेरे बच्चों ने बड़े प्यार से मेरी देख भाल करनी शुरू की और मैं भी बड़ी खुश थी की अब बुरे दिन ख़तम हुए...... पर धीरे धीरे समझ में आने लगा कि उनकी नज़र मेरी सम्पदा पे है सो वो आपस में ही बैर रखने लगे हैं कि मैं किसकी ज्यादा सगी हूँ... कौन मुझे छुड़ाने में ज्यादा सक्रिय रहा और कौन नहीं आदि आदि...... कटे हुए हिस्से ने भी मुझपे कब्ज़ा करने के कई प्रयास किये जिन्हें मेरे कुछ वीर और निश्छल बेटों ने अपनी जान दे के विफल किया..... पर कुछ सफ़ेदपोश बेटे मेरे मुझे नोंचने खाने लगे............. बस अब हम समझ गए कि ये सच में कम से कम जिन्न तो है ही जिसके यहाँ एक दुसरे को नोच नोच के खाने की प्रथा है शायद...... दिल में आया कि भगा दें और कुण्डी बंद कर लें.. पर फिर वही फेसबुक के लिए नए मसाले का लालच.... वो बोल रही थी और हम ध्यान लगा के फिर सुनने लगे...... कुछ वर्षों तक मेरा आदर सत्कार किया गया..... फिर पता चला की मेरे कुछ वीर पुत्रों को घर से भगा दिया गया है मुझपे कब्जे के लालच में... मेरे वो बच्चे कहाँ गए आज तक किसी ने मुझे नहीं बताया..... बहुत लूटा खसोटा मुझे.... मेरे कुछ और हिस्से कर के पड़ोसियों को दे दिए............ अब मामला मेरे सर के ऊपर से निकलने लगा था कि हे भगवान् ये कैसी बुढ़िया है कि इसके हिस्से लोगो को दे दिए जाते हैं और हमे तो ये पूरी कि पूरी दिख रही है....... हमने गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला को कस के पकड़ा और बिलकुल हमला करने की मुद्रा में तैयार हो के बैठ गए कि देखा जायेगा... आक्रमण करेगी तो हम भी हनुमान जी के पट्ठे है... उठा के धोबी पाट देंगे... बुढ़िया टै बोल जाएगी..... और फिर वही लालच.. हम सुनने लगे.... बेटा मुझे खूब नोचा खसोटा.... मेरे घर का सामान ले जा के गैरों के घरों में रख दिया गया.... मेरे कितने ही बच्चे बीमारी से इलाज़ के बिना तड़प तड़प के मर गए कितने भूख से मर गए पर मेरे इन लालची बेटों ने किसी की न सुनी....... अब हमारा सर सच में चकराने लगा था कि ये गांधारी तो नहीं निकल के आ गयी महाभारत की कथा में से... कित्ते बेटे थे इसके......हमने मन ही मन ॐ हनु हनु हनु हनुमते नमः का जाप शुरू कर दिया..... हम फिर सुनने लगे... वो बोल रही थी.... अपने बच्चों का दर्द मुझसे सहन नहीं हुआ और मैं भी बीमार रहने लगी.... किसी ने मेरी भी दवादारू की कोई चिंता नहीं की..... अब दो बरस पहले मेरे एक दुसरे बेटे ने मुझे अपने पास रख लिया... उसका स्वाभाव बाकियों से बहुत अच्छा है .. मैं खुश हुयी कि अब हालात बदलेंगे... पर उसने तो मेरा मेकअप करना शुरू करवा दिया... मुझे मॉडल सा बना के दूसरों के सामने पेश करने लगा और बोला कि मेरी माँ के पास बहुत कुछ है आप लोग भी आओ और मेरी माँ के ख़राब स्वास्थ्य के लिए कुछ दे जाओ... बदले में मैं आपको अपने घर के आँगन में दुकान खोलने की इज़ाज़त देता हूँ.... लोग दौड़ाने लगे और मेरा ये बेटा भी कुछ लम्पट व्यापारियों को लेके उनमे ही रम गया.... मुझे नए नए कपडे पहना के सबके सामने बिठा देता है रोज़ और खूब मोटा मेक उप लगवाता है जिससे मेरी उम्र और हालात लोगो को पता न चले.... बेटा मैं अब थक गई हूँ इस रोज रोज के प्रपंच से... मुझे अब छुटकारा चाहिए क्योंकि इतना सब होने के बाद मेरे बहुत से बच्चे अभी भी भूखे हैं... कितनो के हाथ से तो रोज़गार ही चला गया है.... महंगाई और ऊपर ही ऊपर बढ़ने लगी है.... घर पहले से थोड़ा ज्यादा चमकने जरूर लगा है और मेरी ख्याति भी पहले से ज्यादा होने लगी है.... बहुत कुछ सही भी हो रहा है पर जब तक मेरा एक भी बेटा भूखा है या बीमार है मुझे चैन कहाँ.. ऊपर से ये बाढ़ और सूखा मुझे स्वस्थ होने ही नहीं देता.... बेटा तुम लिखो तो शायद मेरे इस लायक बेटे तक मेरी बात पहुंचे कि बेटा पहले अपने गरीब भईयों की रोटी तो सस्ती करवा दे... बाकि चमक धमक तो बाद में भी होती रहेगी.... भेदभाव ख़तम कर अपनों में... ये बहुत बड़ी बीमारी है... अपने आपस में ही लड़ झगड़ के मर जायेंगे एक दिन अगर ये भेद भाव ऐसा ही चलता रहा...... पडोसी रोज घर में पत्थर फ़ेंक रहा है उसे समझा के आ और ऐसा समझा कि आइंदा पत्ता फेंकने से पहले भी सौ बार सोचे...... और सबसे पहले अपने कमजोर और गरीब भईयों की सुध ले जो तेरे सुधार कार्यक्रम के पूरा होते होते तो स्वर्ग सिधार जायेंगे..... बेटा लिखेगा न सब तू..... मेरी तन्द्रा जगी तो मैंने पाया कि मैं अपना मुँह डब्बा सा खोल के अपलक उन्हें देखते हुए कलम चलाये जा रहा था... उनके पुकारने पे होश आया तो उनसे फिर पूछ बैठा कि माता जी मैं सब लिखूंगा पर आप हैं कौन.... वो मुस्कुरा के बोलीं कि बेटा अब मुझे जाने दो.... जब तुम मुझे पहचान ही नहीं पाए तो यहाँ बैठ के और क्या करुँगी.... हमने बड़ा जोर लगाया अपने दिमाग पे... सारी बुड्ढी रिश्तेदार याद कर डालीं.... जो मर गयीं उन्हें भी याद कर डाला कि पता नहीं कौन दोबारा मानव भेष धर के मेरे पास आयी हो पर कोई ध्यान नहीं आयी... मैंने छमा मांगते हुए पुनः परिचय पूछा तो एक हलकी सी आवाज सुनाई दी... बेटा यही तो मेरी बदकिस्मती है कि मेरे बेटे ही आज मुझे नहीं पहचानते......... और तभी मुझे तिरंगा दिखाई दिया पर वो बूढी औरत वहाँ कहीं नहीं थी.... मैं उठ के बाहर को भगा तो धड़ाम से नीचे गिरा.... होश आया तो देखा कि खाट के बगल में गिरा हुआ था और दरवाजा वैसा ही बंद था जैसा कि बंद कर के सोया था... तो क्या मैं सपना देख रहा था.????.. क्या सपने में जो आयीं वो भारत माता थी.... हाँ शायद वही थीं... सच ही तो कह रही थीं.... बड़ी उम्मीद थी मोदी जी से पर वो उम्मीदें अब चोट खाने लगीं हैं.. पर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि कुछ तो हो रहा है और बाकियों से तो बहुत ही अच्छा है वो.....
दोस्तों चूँकि मैंने उनसे वादा किया था सो सब पोस्ट कर रहा हूँ.... सोचिये और अपने विचार बताइये.... मनोज कुमार पाण्डेय

भारत का भविष्य - एक व्यंग

दोस्तों यदि इसी तरह से महंगाई और व्यापारियों की मनमानी चलती रही तो एक दिन ऐसी बातें भी सुनने को मिलेंगी.....
किसी की मौत पे उसकी बीवी से सहेली ने पूछा कि हाय क्या हो गया... अभी परसों बस में मिले तो भले चंगे थे... बीवी बोली कि हाय क्या बताऊँ.. सब गलती मेरी ही है... बाजार से सब्जी लेने मैं ही जाया करती थी... पर आज सुबह मैंने इन्हें सब्जी लेने भेज दिया.... बस वहाँ टमाटर के भाव सुनते ही गश खा के गिर पड़े और फिर न उठे.... सब गलती मेरी ही है....
डॉ. साहब घुटने दुखने लगे हैं कोई दवा दे दीजिये..... डॉ. बोला कि भाई अभी तो जवान हो.. अभी से घुटनो की समस्या...... अरे डॉ. साहब बेटे का नर्सरी में अड्मिशन करवाना था सो स्कूल स्कूल चक्कर लगा लगा के चौथी चौथी मंजिलों पे भूखे प्यासे चढ़ चढ़ के ये हाल हो गया है... खैर अड्मिशन हो गया मेरे बच्चे का डॉ. साहब...वो जरूरी था.....
क्या हुआ बहन.. भाईसाहब को हम लोग कल अस्पताल में देख के आये थे.... सही तो हो गए थे और आज शायद सुबह डिस्चार्ज भी होना था.... अब बुखार ही तो हुआ था... फिर ऐसा क्या हुआ कि जिन्दा घर नहीं आ पाए...... मृतक की बीवी: हाय क्या बताऊँ बहनजी..... एकदम ठीक ठाक सुबह नाश्ता किया और कपडे बदल के घर के लिए निकले.... पर काउंटर पे बिल देख के दिल का दौरा पड़ गया.. सब दौड़े.. कुछ संभले... तो डॉ. दौड़ के आया और फिर से भर्ती करने को बोला... बस यही सहन नहीं कर पाए और चल बसे....
डेली इन्शुरन्स की स्कीम आएँगी कि आपके घर के लोग घर से निकल के शाम को घर नहीं आये तो आपको इतना पैसा मिलेगा.... और लोग खूब करवाएंगे..... ऐसे बीमा भी होंगे कि बाजार जा के यदि किसी को दिल का दौरा पड़ जाये तो उसे इतना पैसे मिलेंगे.... ये बीमा महीने में एक बार मिला करेगा... भोज के लिए सब्जी लेने लोग सिक्योरिटी गार्ड्स साथ ले के जाया करेंगे....
फल फ्रूट्स के म्यूजियम बन जायेंगे... लोग भरी टिकेट लेके देखने जाया करेंगे.....
इंसान हेलीकाप्टर से आटा लेने जाया करेगा...... दो फ्लाइट्स के टिकेट लेने पे एक किलो दाल मुफ्त... एक किलो आटा मुफ्त... ऐसे ऐसे ऑफर हुआ करेंगे....

Sunday, July 20, 2008

Hi Freinds, this is my first day of blogging. I don't know what to post and what not to. Its just start, i am trying to earn it from other blogs.

Well, I am an Event Manager and am recently managing Bangalore IT.in 2008 event happening on 6th to 8th November 2008 at Palace Grounds, Bangalore.

I would like to invite you al to participate in this event as exhibitor or delegate or as sponsor of any service in the Event.