Sunday, October 2, 2016

आत्मावलोकन की आवश्यकता:

मित्रों आज हमे आत्मावलोकन की बहुत अधिक आयश्यकता है. हर बात के लिए हम नेताओं को और सरकार को दोषी ठहरा देते हैं परंतु अपने स्वयं के कार्यकलापों पे ध्यान नहीं देते. आज हमारा प्यारा राष्ट्र बहुत अधिक तेजी से शुभ परिवर्तन की ओर अग्रसर है और ऐसे में विपदाओं, विघ्नों और संकटों का राह में आना स्वाभाविक है. ऐसा ही हो भी रहा है. पर हम हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार मान के स्वयं आराम से बैठ के सरकार के कार्यकलापों का विश्लेषण करते हैं, कभी ये देखने का प्रयास नही करते कि इस सब में हमारा स्वयं का योगदान कितना है. क्या हम इसमें सरकार की कुछ मदद कर सकते हैं. लिखने के लिए या कहने के लिए हमारे पास बहुत बड़े बड़े तर्क और कुतर्क हो सकते हैं पर क्या असल में हम वही हैं जो दिखाते हैं औरों को. बहुत सारे मामलों में इसका नकारात्मक उत्तर ही मिलेगा. हर दूसरा इंसान मुह में राम बगल में छुरी लिए घूम रहा है. बल्कि सौ में से अस्सी ऐसे हैं. ऐसे में हम सरकार की या किसी भी दल के कैसे भी नेता की बुराई किस मुह से करते हैं. हमे तो सब अच्छा चाहिए, हमारे साथ कभी बुरा न हो और न ही हमे कभी अन्याय का सामना करना पड़े पर जब यहीं कर्ता के रूप में हम स्वयं होते हैं तो सब बातें किताबी लगने लगती हैं. तब मात्र अपना स्वार्थ साधना ही न्याय दिखता है, उचित दिखता है.

माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा कि स्वच्छता अपनाओ. बच्चों ने अपना ली पर बड़े आजतक नहीं अपना पाए. अभी भी लोगो को सड़क पे कचरा फेंकते हम देखते हैं और वो भी दिली जैसे शहर में. बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों में चलने वाले इसमें सबसे आगे हैं. और यही सरकारी नीतियों पे बड़े बड़े वातानुकूलित कमरों में बैठ के और कभी कभी तो टीवी के चैनल्स पे बैठ के अपनी टिप्पड़ियां देते हैं. स्वयं के आचरण पे उनका कोई ध्यान नहीं और सरकार को सीख देते हैं. हमे ऐसे लोगो को रोक रोक के समझाना है कि ये राष्ट्र जितना हमारा है उतना ही उनका भी है सो जिम्मेदारियां भी सबकी बराबर हैं.

चीन हमारे लिए नित नई परेशानियां उत्पन्न करता रहता है और सरकार हर स्तर पे उससे टकरा रही है पर हम हैं कि मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि चीनी सामान का बहिस्कार शुरू कर दें. कहते हैं कि दवाइयों में पड़ने वाली 90 प्रतिशत सामग्री चीन से आती है, क्यों.? क्या संसार में और कहीं नहीं मिलतीं ये. पर हाँ चीन से सस्ती नहीं मिलती होंगी और हमारे व्यापारी तो सदा से पैसे के गुलाम रहे हैं, वो भला राष्ट्र हित में सस्ता माल हाथ से क्यों जाने दें. फिर दवाई बनाने वाले तो इंसान भी नहीं हैं. वो अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए नई नई बीमारियां भी इज़ाद कर रहे हैं और फिर उसकी दवइय्याँ बेच बेच के धन इकठ्ठा कर रहे हैं. कितनी ऐसी बीमारियां हैं जो आज तेजी से समाज में फ़ैल रही हैं और जिनका आयुर्वेद में पूर्ण निदान है, ये अंग्रेजी दवा वाले लोग चाहे वो डॉक्टर हो या इससे सम्बंधित कोई भी और, यही कहते मिलेंगे कि इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता.. बस जिंदगी भर दवाई लेते रहिये क्योंकि इसी में उनका फायदा है. पूरी तरह आप ठीक हो जायेंगे तो उनकी दवाई उतनी नहीं बिकेगी जितनी कि वो बेचना चाहते हैं. उच्च रक्तचाप हो या मधुमेह हो, इस सबका आयुर्वेद में पूर्ण निदान है, ये आयुर्वद के सही उपचार से हमेशा के लिए समाप्त हो सकती हैं पर इसमें समय लगता है और इस सबका सटीक और पूरा ज्ञान हम भूल चुके हैं पर अब उसे पुनः जीवित किया जा रहा है.

खैर बात हो रही थी आत्मावलोकन की. हम चार लोगो के बीच में बड़ी बड़ी बातें करते हैं पर जब उन्ही बातों को यथार्थ में जीवन में उतारने की बारी आती है तो सौ बहाने होते हैं हमारे पास उससे बचने के. हम सरकार को कोस रहे हैं कि वो चीन का माल भारत में इम्पोर्ट होना बैन क्यों नहीं करती पर हम स्वयं उसे खरीदना बंद नहीं करेंगे. सुबह शाम चीन को पानी पी पी के कोसेंगे पर भीतर ही भीतर ये पता लगा रहे होते हैं कि यार चाइना मेड कोई LED टीवी आया है क्या 52" का, बीस तीस हज़ार में ही मिल जायेगा. बाजार से कोई भी वस्तु खरीदते समय दुकानदर से ये नहीं बोलते कि भैया चाइना मेड नहीं होना चाहिए. मैं बोलता हूँ और हर चीज में बोलता हूँ इसीलिये ठोक के यहाँ लिख रहा हूँ. सभी ऐसे कब सोचेंगे. मित्रों जिस दिन हम सब एक होके आचरण करने लगे, विश्व की कोई अर्थव्यवस्था हमसे बड़ी नहीं होगी और हमसे अधिक विश्व में कोई शक्तिशाली नहीं होगा. लिखने को तो ऐसी बातों पे पन्ने पे पन्ने भरे जा सकते हैं पर क्या फायदा. सोचना तो हम सभी को है. अपने तुच्छ स्वार्थों को छोड़ के समाज के हित के बारे में, राष्ट्र के हित के बारे में सोच के तो देखिये, आपकी आत्मा स्वयं आपकी पीठ ठोकेगी, रात में नींद बहुत अच्छी आएगी और सच में सबसे आँख से आँख मिला के बात कर पाओगे. चार पैसे बचाने या कमाने के लालच में अपनी ही बहु बेटियों की इज़्ज़त खतरे में मत डालो दोस्तों. अभी भी समय है चेत जाओ,अन्यथा बहुत देर हो गई तो हाथ मलने के सिवा कुछ हाथ में रह नहीं जायेगा. हम जैसे तो शहीद हो चुके होंगे सो हमे कोई चिंता नहीं पर जो बचेंगे उनका क्या होगा सोच के ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं. तालिबानियों का और ISI का विडियो नित देखते ही हो.

इसे पढ़ के यदि चार लोग भी संकल्प ले लेंगे कि आज के बाद चीन का बना माल नहीं खरीदेंगे और अपने मित्रों को भी नहीं खरीदने देंगे हम समझेंगे कि ये कुछ मिनट जो हमने इसे लिखने में व्यतीत किये हैं व्यर्थ नहीं गए. हम सब माँ भारती की संतान हैं. इसकी आबरू की रक्षा करना मात्र सैनिको का काम नहीं है और न ही मात्र सरकार का है, अपितु हम सबका है. जागो दोस्तों, हम संगठित हो गए तो सब दुःख दर्द दूर हो जायेंगे. तुच्छ स्वार्थों को छोड़ के आगे बढ़ो और चीन के माल की वैसे ही होली जलाओ जैसी कि स्वतंत्रता सैनानियों ने विदेशी माल की, आज़ादी से पहले जलाई थी. चीन को पता चलना चाहिए कि भारतीय इतने मुर्ख नहीं कि वो कुछ भी करता रहे और हमे लूटता भी रहे, हम चुप रहेंगे.? नहीं..... चीन का सबसे बड़ा बाजार हम हैं.. यहाँ वो अपना कचरा भी बेच लेता है.. उसकी अर्थव्यवस्था को हमारा बाजार खोने से बहुत बड़ा धक्का लगेगा.

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जय हिन्द, जय भारती, इंक़लाब ज़िंदाबाद.... वन्दे मातरम..... अंत में सभी को नवरात्रों कि बहुत बहुत बधाई. मनोज कुमार पाण्डेय