Sunday, August 28, 2016

भारत माता का दर्द - एक सचेतक

चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी... कैसे पैसों का इंतज़ाम करें . बिटिया के पेपर होने वाले हैं.. एग्जामिनेशन फी भरनी है... बता रही थी कि इस साल दोगुनी हो गई है... किसी तरह बेटे के स्कूल के जूतों के लिए पैसों का प्रबंध किया था पर शायद वो इस फी में खप जायेंगे.... बेटे को फिर वही फटे तल्ले का जूता पहन के जाना पड़ेगा.... जो ऊपर से जूता दीखता है पर नीचे से बेटा दरअसल नंगे पैर ही धरती पे चल रहा होता है.... वो तो हमने अपने बच्चों को परवरिश ऐसी दी है कि वो आजकल के बच्चों की तरह हीन भावना नहीं पालते पर उनकी माँ का क्या करें.... सुबह शाम कान खाती है कि बच्चों के लिए ये लाना है वो लाना है.... कैसे बताऊँ कि तनख्वाह सरकारी कर्मचारियों की बढ़ी है हम प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले लोगो की नहीं..... उसी अनुपात में लाला लोगो ने महंगाई भी बढ़ा दी है...... हमारी सुनता कौन है..... न सरकार.. न लाला और न ही कंपनी का मालिक...... इस बार बोनस भी नहीं मिलेगा ... मालिक बोल रहा था कि बड़ी बड़ी कंपनियों के हमारे धंधे में आ जाने से मुनाफा ही नहीं हुआ है तो बोनस कहा से देंगे... क्या करूँ कहाँ जाऊं कुछ समझ में नहीं आ रहा.... ये तो अच्छा हुआ कि बीबी की बात न मान के बच्चों को सरकारी स्कूल में डाला.. कहीं गलती से किसी निजी स्कूल में डाल दिया होता तो आज तो घर का सारा सामान भी बिक गया होता उन्हें पढ़ाने में.... सब्जी लेने भी ऐसे जाता हूँ कि जैसे अपनी परीक्षा का रिजल्ट लेने जा रहा हूँ... बड़ी हिम्मत कर के भाव पूछता हूँ..... सरकार कोई ऐसा बीमा ही बनवा दे जो भाव सुन के मरे लोगो के घर वालों को कुछ दे दे....
बड़ी मुश्किल में नींद आयी कि अचानक दरवाजे पे दस्तक हुयी.... आवाज़ बहुत धीमी सी थी सो सोचा कि कुछ और होगा और पुनः सोने का प्रयास करने लगे कि तभी फिर से हलकी सी दस्तक सुनाई दी.... समझ में नहीं आया कि इतनी रात में कौन हो सकता है जो चोरों की तरह एक दम दबी छुपी सी दस्तक दे रहा है..... कहीं सच में कोई उचक्का बदमाश तो नहीं... फिर अपनी सोच पे ही हंसी आयी की उचक्का बदमाश यहाँ क्या लेने आएगा...बढ़ के दरवाजा खोला तो देखा कि सीढ़ियों पे एक जर्जर सी काया पड़ी है जो बड़ी मुश्किल से चेहरा उठा के मुझे देखने का प्रयास कर रही है..... कौन है ये.. सोच के पूछा की कौन हैं आप..... थोड़ा और ध्यान से देखा तो स्त्री जान पड़ी.... हमने पूछा.. माता जी कौन है आप और क्या काम है..... स्त्री इशारे से बोली कि अंदर ले चलो और पीने को कुछ पानी दे दो..... हमने सहारा दे के उन्हें अंदर ला के खाट पे बिठाया और तुरंत पीने को पानी दिया.... बीबी को जगाया नहीं कि पता नहीं क्या क्या बोलने लगेगी आधी रात को.... लाइट में स्त्री को ठीक से देखा... बहुत ही ज्यादा बूढी औरत थी... कपडे तो नए से लग रहे थे और चेहरे पर मेकअप के निशान भी दिख रहे थे कि जैसे किसी ने जबरदस्ती उसका बुढ़ापा छुपाने की कोशिश की हो.... हमने उसे थोड़ा समय दिया... पानी पी के जब वो थोड़ा संयत सी दिखाई देने लगी तो हमने पुनः पूछा कि माता जी आप कौन हो.. कहा से आयी हो.. और मुझसे क्या काम है...... वो बोली तो लगा कि उसकी आवाज़ कोसों दूर से आ रही है... इतनी निर्बल आवाज़.?.... हमने ध्यान से सुना... वो बोली.. बेटा मैंने सुना है कि तुम समाज के लिए कुछ न कुछ लिखते रहते हो सो आज मैं भी अपना दुखड़ा ले के तुम्हारे पास आयी हूँ... मेरी असलियत लिखो जिससे लोग मेरा सच जान पाएं और मेरे इस नकली चेहरे के पीछे का असली चेहरा देख सकें..... हमने उनसे कहा कि माता जी मैं कोई लेखक नहीं हूँ... ये तो यूँ ही फेस बुक का कीड़ा जब जब काटता है तो कुछ न कुछ बकवास लिख के खुजली मिटाने की कोशिश करता हूँ... वो बोली की बेटा इतना ही बहुत है... कुछ लोग तो पढ़ेंगे और जानेंगे.... मैंने कहा की ठीक है आप तफ्सील से अपनी बात सुनाइए हम कल ही फेस बुक में छाप देंगे... मन ही मन हम प्रसन्न हुए कि दोस्त लोग रोज़ कुछ न कुछ पोस्ट किये जा रहे हैं और हमे कोई मुद्दा ही नहीं मिल रहा था कई दिनों से पोस्ट करने को.... सारी भूख प्यास भी धीरे धीरे ख़तम सी होने लगी थी इसके अभाव में..... अपनी गरीबी में एक यही तो है जो बादशाहत का एहसास कराती है.... आज कुछ मसाला मिलेगा लिखने को... सो हम तुरंत अपने हथियार... यानि कॉपी पेन ले के तैयार हो गए.....
औरत ने मरी आवाज़ में बोलना शुरू किया... बेटा मुझपे साल दर साल परायों का कब्ज़ा रहा..... करीब सत्तर साल पहले मेरे बेटे मुझे छुड़ा के लाये....... लाते ही मेरा दाहिना हिस्सा थोड़ा सा काट दिया गया ये बोल के कि उस हिस्से में गन्दगी फ़ैल गई है जबकि वो हिस्सा आज भी महफूज है.. वो अलग बात है कि वो तो मुझसे भी ज्यादा मरणासन्न स्थिति में है..... मुझे बुढ़िया की बातें अनाप सनाप लगने लगीं.... मैंने टोका बीच में.. माता जी आप तो पूरी की पूरी दिखाई दे रही है... किस हिस्से की बात कर रही हैं... वो थोड़ा गुस्से में बोली... चुपचाप सुनो.. टोको नहीं बीच में... सब समझ जाओगे खुद ही...हमने कहा कि ठीक है.. इरशाद... ठोकिए आगे....हम लपेटते हैं .... उसने फिर शून्य में नज़रें टिका दीं और बोलने लगी .... आवाज़ फिर उसी तरह किसी कुएं के अंदर से आती प्रतीत होने लगी.... हम कुछ डर भी गए कि कहीं कोई चुड़ैल या पिशाचिनी तो नहीं है.... हनुमान जी का स्मरण किया और हिम्मत जुटा के सुनने लगे.. क्योंकि फेस बुक के लिए कुछ मिल रहा था .. ये लालच हमारे डर पे हावी हो गया..... हमने सुना वो कह रही थी.... मेरे हिस्से करने के बार मेरे बच्चों ने बड़े प्यार से मेरी देख भाल करनी शुरू की और मैं भी बड़ी खुश थी की अब बुरे दिन ख़तम हुए...... पर धीरे धीरे समझ में आने लगा कि उनकी नज़र मेरी सम्पदा पे है सो वो आपस में ही बैर रखने लगे हैं कि मैं किसकी ज्यादा सगी हूँ... कौन मुझे छुड़ाने में ज्यादा सक्रिय रहा और कौन नहीं आदि आदि...... कटे हुए हिस्से ने भी मुझपे कब्ज़ा करने के कई प्रयास किये जिन्हें मेरे कुछ वीर और निश्छल बेटों ने अपनी जान दे के विफल किया..... पर कुछ सफ़ेदपोश बेटे मेरे मुझे नोंचने खाने लगे............. बस अब हम समझ गए कि ये सच में कम से कम जिन्न तो है ही जिसके यहाँ एक दुसरे को नोच नोच के खाने की प्रथा है शायद...... दिल में आया कि भगा दें और कुण्डी बंद कर लें.. पर फिर वही फेसबुक के लिए नए मसाले का लालच.... वो बोल रही थी और हम ध्यान लगा के फिर सुनने लगे...... कुछ वर्षों तक मेरा आदर सत्कार किया गया..... फिर पता चला की मेरे कुछ वीर पुत्रों को घर से भगा दिया गया है मुझपे कब्जे के लालच में... मेरे वो बच्चे कहाँ गए आज तक किसी ने मुझे नहीं बताया..... बहुत लूटा खसोटा मुझे.... मेरे कुछ और हिस्से कर के पड़ोसियों को दे दिए............ अब मामला मेरे सर के ऊपर से निकलने लगा था कि हे भगवान् ये कैसी बुढ़िया है कि इसके हिस्से लोगो को दे दिए जाते हैं और हमे तो ये पूरी कि पूरी दिख रही है....... हमने गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला को कस के पकड़ा और बिलकुल हमला करने की मुद्रा में तैयार हो के बैठ गए कि देखा जायेगा... आक्रमण करेगी तो हम भी हनुमान जी के पट्ठे है... उठा के धोबी पाट देंगे... बुढ़िया टै बोल जाएगी..... और फिर वही लालच.. हम सुनने लगे.... बेटा मुझे खूब नोचा खसोटा.... मेरे घर का सामान ले जा के गैरों के घरों में रख दिया गया.... मेरे कितने ही बच्चे बीमारी से इलाज़ के बिना तड़प तड़प के मर गए कितने भूख से मर गए पर मेरे इन लालची बेटों ने किसी की न सुनी....... अब हमारा सर सच में चकराने लगा था कि ये गांधारी तो नहीं निकल के आ गयी महाभारत की कथा में से... कित्ते बेटे थे इसके......हमने मन ही मन ॐ हनु हनु हनु हनुमते नमः का जाप शुरू कर दिया..... हम फिर सुनने लगे... वो बोल रही थी.... अपने बच्चों का दर्द मुझसे सहन नहीं हुआ और मैं भी बीमार रहने लगी.... किसी ने मेरी भी दवादारू की कोई चिंता नहीं की..... अब दो बरस पहले मेरे एक दुसरे बेटे ने मुझे अपने पास रख लिया... उसका स्वाभाव बाकियों से बहुत अच्छा है .. मैं खुश हुयी कि अब हालात बदलेंगे... पर उसने तो मेरा मेकअप करना शुरू करवा दिया... मुझे मॉडल सा बना के दूसरों के सामने पेश करने लगा और बोला कि मेरी माँ के पास बहुत कुछ है आप लोग भी आओ और मेरी माँ के ख़राब स्वास्थ्य के लिए कुछ दे जाओ... बदले में मैं आपको अपने घर के आँगन में दुकान खोलने की इज़ाज़त देता हूँ.... लोग दौड़ाने लगे और मेरा ये बेटा भी कुछ लम्पट व्यापारियों को लेके उनमे ही रम गया.... मुझे नए नए कपडे पहना के सबके सामने बिठा देता है रोज़ और खूब मोटा मेक उप लगवाता है जिससे मेरी उम्र और हालात लोगो को पता न चले.... बेटा मैं अब थक गई हूँ इस रोज रोज के प्रपंच से... मुझे अब छुटकारा चाहिए क्योंकि इतना सब होने के बाद मेरे बहुत से बच्चे अभी भी भूखे हैं... कितनो के हाथ से तो रोज़गार ही चला गया है.... महंगाई और ऊपर ही ऊपर बढ़ने लगी है.... घर पहले से थोड़ा ज्यादा चमकने जरूर लगा है और मेरी ख्याति भी पहले से ज्यादा होने लगी है.... बहुत कुछ सही भी हो रहा है पर जब तक मेरा एक भी बेटा भूखा है या बीमार है मुझे चैन कहाँ.. ऊपर से ये बाढ़ और सूखा मुझे स्वस्थ होने ही नहीं देता.... बेटा तुम लिखो तो शायद मेरे इस लायक बेटे तक मेरी बात पहुंचे कि बेटा पहले अपने गरीब भईयों की रोटी तो सस्ती करवा दे... बाकि चमक धमक तो बाद में भी होती रहेगी.... भेदभाव ख़तम कर अपनों में... ये बहुत बड़ी बीमारी है... अपने आपस में ही लड़ झगड़ के मर जायेंगे एक दिन अगर ये भेद भाव ऐसा ही चलता रहा...... पडोसी रोज घर में पत्थर फ़ेंक रहा है उसे समझा के आ और ऐसा समझा कि आइंदा पत्ता फेंकने से पहले भी सौ बार सोचे...... और सबसे पहले अपने कमजोर और गरीब भईयों की सुध ले जो तेरे सुधार कार्यक्रम के पूरा होते होते तो स्वर्ग सिधार जायेंगे..... बेटा लिखेगा न सब तू..... मेरी तन्द्रा जगी तो मैंने पाया कि मैं अपना मुँह डब्बा सा खोल के अपलक उन्हें देखते हुए कलम चलाये जा रहा था... उनके पुकारने पे होश आया तो उनसे फिर पूछ बैठा कि माता जी मैं सब लिखूंगा पर आप हैं कौन.... वो मुस्कुरा के बोलीं कि बेटा अब मुझे जाने दो.... जब तुम मुझे पहचान ही नहीं पाए तो यहाँ बैठ के और क्या करुँगी.... हमने बड़ा जोर लगाया अपने दिमाग पे... सारी बुड्ढी रिश्तेदार याद कर डालीं.... जो मर गयीं उन्हें भी याद कर डाला कि पता नहीं कौन दोबारा मानव भेष धर के मेरे पास आयी हो पर कोई ध्यान नहीं आयी... मैंने छमा मांगते हुए पुनः परिचय पूछा तो एक हलकी सी आवाज सुनाई दी... बेटा यही तो मेरी बदकिस्मती है कि मेरे बेटे ही आज मुझे नहीं पहचानते......... और तभी मुझे तिरंगा दिखाई दिया पर वो बूढी औरत वहाँ कहीं नहीं थी.... मैं उठ के बाहर को भगा तो धड़ाम से नीचे गिरा.... होश आया तो देखा कि खाट के बगल में गिरा हुआ था और दरवाजा वैसा ही बंद था जैसा कि बंद कर के सोया था... तो क्या मैं सपना देख रहा था.????.. क्या सपने में जो आयीं वो भारत माता थी.... हाँ शायद वही थीं... सच ही तो कह रही थीं.... बड़ी उम्मीद थी मोदी जी से पर वो उम्मीदें अब चोट खाने लगीं हैं.. पर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि कुछ तो हो रहा है और बाकियों से तो बहुत ही अच्छा है वो.....
दोस्तों चूँकि मैंने उनसे वादा किया था सो सब पोस्ट कर रहा हूँ.... सोचिये और अपने विचार बताइये.... मनोज कुमार पाण्डेय

भारत का भविष्य - एक व्यंग

दोस्तों यदि इसी तरह से महंगाई और व्यापारियों की मनमानी चलती रही तो एक दिन ऐसी बातें भी सुनने को मिलेंगी.....
किसी की मौत पे उसकी बीवी से सहेली ने पूछा कि हाय क्या हो गया... अभी परसों बस में मिले तो भले चंगे थे... बीवी बोली कि हाय क्या बताऊँ.. सब गलती मेरी ही है... बाजार से सब्जी लेने मैं ही जाया करती थी... पर आज सुबह मैंने इन्हें सब्जी लेने भेज दिया.... बस वहाँ टमाटर के भाव सुनते ही गश खा के गिर पड़े और फिर न उठे.... सब गलती मेरी ही है....
डॉ. साहब घुटने दुखने लगे हैं कोई दवा दे दीजिये..... डॉ. बोला कि भाई अभी तो जवान हो.. अभी से घुटनो की समस्या...... अरे डॉ. साहब बेटे का नर्सरी में अड्मिशन करवाना था सो स्कूल स्कूल चक्कर लगा लगा के चौथी चौथी मंजिलों पे भूखे प्यासे चढ़ चढ़ के ये हाल हो गया है... खैर अड्मिशन हो गया मेरे बच्चे का डॉ. साहब...वो जरूरी था.....
क्या हुआ बहन.. भाईसाहब को हम लोग कल अस्पताल में देख के आये थे.... सही तो हो गए थे और आज शायद सुबह डिस्चार्ज भी होना था.... अब बुखार ही तो हुआ था... फिर ऐसा क्या हुआ कि जिन्दा घर नहीं आ पाए...... मृतक की बीवी: हाय क्या बताऊँ बहनजी..... एकदम ठीक ठाक सुबह नाश्ता किया और कपडे बदल के घर के लिए निकले.... पर काउंटर पे बिल देख के दिल का दौरा पड़ गया.. सब दौड़े.. कुछ संभले... तो डॉ. दौड़ के आया और फिर से भर्ती करने को बोला... बस यही सहन नहीं कर पाए और चल बसे....
डेली इन्शुरन्स की स्कीम आएँगी कि आपके घर के लोग घर से निकल के शाम को घर नहीं आये तो आपको इतना पैसा मिलेगा.... और लोग खूब करवाएंगे..... ऐसे बीमा भी होंगे कि बाजार जा के यदि किसी को दिल का दौरा पड़ जाये तो उसे इतना पैसे मिलेंगे.... ये बीमा महीने में एक बार मिला करेगा... भोज के लिए सब्जी लेने लोग सिक्योरिटी गार्ड्स साथ ले के जाया करेंगे....
फल फ्रूट्स के म्यूजियम बन जायेंगे... लोग भरी टिकेट लेके देखने जाया करेंगे.....
इंसान हेलीकाप्टर से आटा लेने जाया करेगा...... दो फ्लाइट्स के टिकेट लेने पे एक किलो दाल मुफ्त... एक किलो आटा मुफ्त... ऐसे ऐसे ऑफर हुआ करेंगे....