Sunday, September 11, 2016

चचा शाकिर की कल्लो...

हम सुबह सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार खोलते ही जा रहे थे की चचा शाकिर की मिमियाहट भरी आवाज़ सुनाई दी... अरे भाई पाण्डेय जी.... अंदर हैं क्या..... हम बोले कि हाँ चचा अंदर ही हैं... चले आइये बेतकल्लुफ़.... हम पूरे के पूरे यहीं हैं..... चचा धड़धड़ाते हुए से अंदर दाखिल हुए और सामने वाले सोफे पे पसर गए... हमने देखा कि हमेशा कुर्ते पैजामे में रहने वाले चचा लुंगी पहने ही चले आये..... चेहरे पे बड़ी गंभीरता सी नज़र आ रही थी... चूँकि हम अक्सर चचा से मजाक करते रहते हैं सो फिर से एक छोड़ दिया.... क्यों चचा चची से लड़ के आ रहे हो क्या.... या चची ने आज मुर्गी छोड़ दी ऊपर..... बस चचा भड़क गए...... एकदम मरियल सी बाहें फड़फड़ा के बोले..... अमा पाण्डेय जी तुम चुहल भोत कत्ते ओ, औ ए हमे अच्छा नई लगता... अमा तुम्हायी चची काहे हमपे गुर्रायेगी... हमने कौन सी उनकी सुरमेदानी में कोयला मिलाया हे....... अरे तो चचा फिर क्या हो गया.. ये सुबह सवेरे ऐसे मुह लटकाये घूम रहे हो... कोई गलत शलत सपना तो न देख लिया इस उम्र में.... कहीं कोई पुरानी माशूका दिख गई हो.... हमने फिर चुहल करी...... अरे चचा तो एकदम पतलून के बाहर हो गए.... मियां तुम्हायी यई बात हमे बिलकुल अच्छी नई लगती है... आदमी का मूड शूड देखते नई हो और शुरू हो जाते हो...... हमाई तो हियाँ जान पे बनी है और तुम्हे मजाक की सूझ रई  हे....

हमने बात संभाली.. अरे चचा नाराज काहे होते हो... बैठो न... श्रीमती जी को आवाज दी कि चचा के लिए एक गरमा गरम चाय भेजो..... चचा बैठे और बड़े उदास सुर में बोले..... पाण्डेय जी का बताएं... हमाई कल्लो कहीं ग़ुम हो गई है... या कोई खोल ले गया रात में....... अरे कैसे हुआ और कौन है ये कल्लो... कोई रिश्तेदार है क्या आपकी क्योंकि घर में तो कोई कल्लो है नहीं आपके... और बांध के काहे रक्खा था... हमने पूछा.... चचा फिर भड़क गए... अमा रिश्तेदार होगी आपकी... हमाए अभी इत्ते बुरे दिन नई आये कि भेड़ बकरियां हमाई रिश्तेदार बनने लगें.... ओह तो आपकी बकरी का नाम कल्लो है.....खैर आगे बढ़िए.. हमने कहा...

फिर चचा तफ्सील से बताने लगे कि रात तो बड़ी मजे में थी... कोई मार पीट भी नहीं हुई थी कि खूंटा तुड़ा के भाग जाती... सुबह जुम्मन की अम्मा (यानी हमारी चची) ने हमे भड़भड़ा के उठाया कि कल्लो कहाँ गई... हमने कहा कि कहाँ जाएगी.. बहार खूंटे में तो बंधी थी... बो बोली तो का हमाये दीदे फूट गए जो हमे नई दिखाई दे रई ... सच्ची सच्ची बताओ तुम्हे खुदा का वास्ता हे........  तुमने रात में किसी को बेच तो न दी..... और पाण्डेय जी बिना हमाई सुने रोवुन लगी वा तो..... हाय  बिना कल्लो के अब का होगा... न चाय मिलेगी न बच्चों को दूध मिलेगा... हाय करमजली हूँ मैं जो ऐसा शोहर मिला... आग लगे हमाये अब्बू को जो इस निखट्टू के पल्ले बांध गए हमे........ हम मिमियाए, क्योंकि उसकी ऐसी सूरत के आगे हम मिमियाई पाते हैं पाण्डेय जी...... हंसो मत पाण्डेय जी... आगे सुनो... हम बोले... अरे अरे बेगम का अनाप सनाप बके जा रई हो.. हुआ का ये तो बताओ.... हमने कल्लो को कहीं नई बेचा.. रात में देखा था कि बाहर बंधी थी..... चची बोलीं अब नई है हुआ...... खूंटा भी ठीक ठाक है... रस्सी समेत गायब है कल्लो..... हमे नई पता.. ढूँढ के लाओ.. चाहे जहा से लाओ.... नहीं लाये तो घर मति आइयो...... समझ लो... जुम्मन, पप्पन, कल्लन सबकी कसम खा के बोल रै हैं कि अगर कल्लो को न लाये तो मैं तुम्हे तुम्हारा ही मरा मु दिखाउंगी.... भैया पाण्डेय जी हम उसी बखत लुंगी संभाल के उठे और बहार दौड़ लिए की इसका का भरोसा... कहीं अभी न हमे अल्ला ताला के पास भेज दे.... पागल औरत हे... हमाई अम्मा का भी दिमाग ख़राब हो गया था कि उम्र में हमसे पांच साल बड़ी ऐसी बौड़म औरत व्याह दी हमसे..... जिंदगी भर से बस सुनते ही आ रै है उसकी..... लगता है उसे सुनाने की तमन्ना लिए हम  इंतकाल फरमा जायेंगे.... काश हम भी कभी उसे तबियत से सुना पाते...... हमने टोका.. चचा मुद्दे पे आओ... कल्लो की बात कर रहे थे आप....

चचा जैसे सपने से जगे और बोले... कि अरे हाँ बात तो कल्लो की चल लई थी पाण्डेय जी.... बड़ा ढूंढा  कम्बखत मारी को पर न मिली कहीं... अब घर केसे जाएँ.... वो जिन्नातों की अम्मा हमाये जनाजे का पूरा इंतज़ाम करे बैठी होगी....... हमने तो मजनू के बकरे को भी चेक कल्लिया कि सुसुरा कही भगा न ले गया हो हमाई कल्लो को... पर बो तो बड़े ठाट से मजनू के चौपाल में बंधा मूछे ऐठ रिया था........

हमने पूछा कि चचा इसमें हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं..... आप तो जानते ही हैं कि बकरी हमने कभी पाली नहीं और न ही उनकी साइक्लोजी समझते हैं...... हम क्या सहायता करें आपकी..... चचा चाय की चुश्की छोड़ के एकदम से हमारे पास खिसक आये और बड़े ख़ुफ़िया अंदाज़ में हमसे हमारा कान आगे करने को कहा... हमने कान आगे किया तो चचा फुसफुसा के बोले.. पाण्डेय जी आप बताओ न बताओ पर हमे सब पता है.. और बोल के मुस्कुराने लगे.... अब चिंता की बारी हमारी थी कि चचा को ऐसा हमारे बारे में क्या पता चल गया जो इत्ता मुस्कुरा रहे हैं.... हमने शंकित नज़रों से उन्हें घूर के पूछा कि चचा क्या पता है आपको..... और हम घबराये भी अंदर ही अंदर कि पता नहीं कौन सा राज़ खोल दें चचा हमारा..... चचा फिर दाहिनी आँख दबा के बोले कि अरे हमे सब पता है... पर आप चिंता न करो हम किसी को बताएँगे नहीं.... अब हमे झल्लाहट होने लगी थी... हमने थोड़ा कड़क के पूछा कि चचा पहेलियाँ न बुझाओ.. साफ़ साफ़ कहो क्या पता है..... चचा हमारा अंदाज देख के सकपका से गए और तुरंत बोले.. अरे न न पाण्डेय जी... आप तो खाम खां गरम हुए जा रहे हैं... ये तो बड़े फ़कर की बात है... सबकी ऐसी किस्मत कहाँ जैसी कि आपकी हे..... हमने फिर थोड़ा नरम होते हुए पूछा कि चचा साफ साफ़ बात करो न... हमे जाना भी है देर हो रही है....

चचा मुद्दे पे आ गए और बोले कि हमने सुना है कि आपकी सरकार में बड़ी पकड़ है..... और शातिराना तरह से फिर मुस्कुराये चचा... हमने हैरानी से पूछा कि किसने कहा आपको... एकदम बकवास है ये.... चचा फिर फुसफुसा के बोले कि अरे हमसे न बनो आप, हमे सब पता हे.... आपकी खूब जान पहचान है लखनऊ में.... और दिल्ली में भी....... हमने पीछा छुड़ाने की गरज़ से कहा कि है तो...... तो चचा बोल पड़े तो हमाई मदद कर दो न... कहे इत्ती बाली उमर में हमे खर्च करवा रै हो..... वो जललादिनी एकदम न सोचेगी हमे उड़ाते हुए... अभी उमर क्या है हमाई पाण्डेय जी.... आठइ तो बच्चे हैं अभी हमाए ..... मैंने हैरानी से पूछा कि चचा और क्या शतक बनाना है... चचा बोले कि अरे शतक नई पर वो सामने वाले नूरा से एक ज्यादा तो करेंगे ही.... हमने कहा चचा होश में आओ.. नूरा के बारह बच्चे हैं और ऐसे ही चलता रहा तो भी उसके हमेशा आपसे चार बच्चे ज्यादा ही रहेंगे..... देश का भी ख्याल करो और अपने इस नामाकूल मुक़ाबले में आबादी न बढाओ..... सही है चची तुम्हे खर्च ही कर डालें तो ही सही है... चचा भड़क गए... का बोला पाण्डेय जी तुमने... हम तो तुम्हे अपना यार समझते थे और तुम हमाई पीठ में खंज़र भोंकने की तयारी कर रहे हो... एक तो वैसे ही तुम्हायी वजह से रोज़ तुम्हायी चची की सुनते हैं...... हमारी वजह से क्यों... हमने कौन सा आपके आँगन में पीपल उगाया हुआ है... चचा आँखें गोल कर के बोले कि अरे दो साल पहले ये भाजपा को वोट तो दिलवा दिया था   जिससे हमाई मारुती कार गैराज में बंद पड़ी है क्योंकि 15  साल से ज्यादा पुरानी हो गई है... कसम से तुम्हायी चची को एक दिन भी उसपे घुमा न सके और ऊपर से ये रोज बढ़ती महंगाई... फिर रेल का किराया भी बढ़ा दिया इस सरकार ने..... हमने कहा चचा तुम पैसेंजर गाड़ी में चलते हो.. ज्यादा हो गया तो एक्सप्रेस की टिकेट कटा लेते हो... किराया तो शताब्दी, राजधानी आदि का बढ़ा है उससे आपको क्या........ चचा बोले लो जी हमे क्यों नई.... बड़े दिनों से ससुरालियों पे जोर बना रक्खा था कि इस बार ससुराल तभी आएंगे जब राजधानी का टिकेट भेजोगे... वो भेजने ही वाले थे कि सुसुरा ये कानून आ गया... अब बेहया लोग देखना.. अभी बहाना बना देंगे कि हम भेजते तो पर अब बहुत महंगा हो गया है.... हमने कहा कि चचा तुम्हे जाना पड़ोस में है और राजधानी के टिकेट पे आँख गड़ाए हो.... दिल्ली से अलीगढ दूर ही कितना है और सारी राजधानी वहाँ रूकती भी नहीं.... चचा थोड़ा चौड़े हो के बोले.. तो क्या हुआ.. लोगो से कहते तो कि हम भी राजधानी में बैठे हैं... अब वो भी नहीं हो पायेगा..

हमने पीछा छुड़ाने की गरज़ से कहा कि ठीक है चचा अब आप जाओ और हमे भी तैयार होने दो... चचा उठ खड़े हुए.. दरवाजे तक जा के दौड़ते हुए से वापस आये... यार पाण्डेय जी तुम तो हमाये बहोत बड़े वाले दुश्मन निकले...... हमे मरने के लिए भेज रै थे क्या.... कल्लो तो मिली नई
अभी..  हमने कहा कि कल्लो यहाँ छुपी है जो यहाँ मिलेगी.. जा के कहीं ढूंढिए.... चचा कान के पास आ के फिर बोले कि पाण्डेय जी जरा पुलिस से कह दो न कि कल्लो ढूंढ दें..... हम हैरान हो गए कि चचा ने ये बात कही कैसे ..... हम भी फट पड़े..... क्या समझते हो आप चचा... पुलिस इसी के लिए बैठी है.. और कोई काम नहीं पुलिस के पास... चचा छड़ी नचा के बोले कि क्यों भाई हमाई बकरी कुछ  नई है क्या... उनकी भैंस खोई थी तो पूरे जिले की पुलिस लग गई थी ढूंढने में और खोज के लाई थी... हमाई तो छोटी सी कल्लो है... कसम से पाण्डेय जी आज के बाद दिखाई न देंगे आपको और आप भी हमे याद कर कर के टसुए बहाओगे अगर हम कल्लो को ले के घर न गए तो...... बोल दो पुलिस से.... आपकी तो सुनते हैं सब... हमाई जान बच जाएगी पाण्डेय जी... अब ये कल्लो का मामला नई है हमाई  जान का है...... हमने उन्हें बहुत समझाया कि भई वो मंत्री की भैंस थी... उनका तो चूहा भी पुलिस ढूढ़ लाती... पर चचा नहीं मान रहे थे... तो हमने टालतें हुये कहा कि ठीक है चचा अभी जाते हुए हम पुलिस से कह जायेंगे और चची को भी हम बोल देते हैं कि आपसे कुछ न कहेंगी.. आप आराम से घर जाइये..... चचा उम्मीद के चिराग जलाते हुए अपने घर को लौट गए और हम सोचने लगे कि शाम को क्या बहाना मारेंगे चचा को.... भगवान करे तब तक उनकी बकरी मिल जाये उनको... पुलिस से कितनी बड़ी उम्मीद लगा ली है चचा ने..... अरे ये तो बकरी है कहीं चचा का लख्ते ज़िगर भी खो जाता तो ये पुलिस दो चार दिन सुनने वाली नहीं है.... मंत्री का चूहा भी राजा होता है.... आम जनता का जीवन भी उनसे छोटा है... कब हम सही मायने में आज़ाद होंगे.... मनोज कुमार पाण्डेय...

आरक्षण और विकास - दो धुर विरोधी तत्त्व

दोस्तों यदि आरक्षण रहेगा तो विकास हो ही नहीं सकता.. हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी क्या कहना चाहते हैं आरक्षण का समर्थन करके कि आरक्षण की व्यवस्था बनाये रखते हुए हम विकास करेंगे..?.... असंभव ... ऐसा हो ही नहीं सकता.... जब तक हर पद पर योग्य अधिकारी और कर्मचारी नहीं बैठा होगा विकास संभव ही नहीं है.... हम आरक्षण भी बनाये रक्खेंगे और विकास भी करेंगे... ये तो बच्चों में रेवड़ी बांटने वाली बात हो गई...... अयोग्य कर्मियों को रख के किसके विकास की बात हो रही है......

आरक्षण हो.. पर मात्र पढ़ाई में... और उसमे भी पढ़ाई के संसाधनों में न कि परीक्षा परिणामो में... उसके आगे कहीं भी आरक्षण नहीं होना चाहिए.... ये आत्मघाती व्यवस्था है और जितने दिन भी चालू रहेगी... सिर्फ खोना ही खोना है.. पाना कुछ भी नहीं.....

आरक्षण समर्थक बड़े जोर शोर से कहते हैं कि आरक्षण का विरोध क्यों करते हो.. जांत पांत का क्यों नहीं करते.... मैं उन सब से पूछना चाहता हूँ कि एक विस्तृत रूप में देख के बताइये कि जांत पांत रह कहा गया है.... सन 1985 तक ही करीब करीब ख़तम हो गया था.... गद्दार वी पी सिंह यदि मंडल कमंडल न लाया होता तो आज तक तो जांत पांत इतिहास की बातें बन चुका होता..... उस कमीने इंसान ने अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण पूरे भारत को नफरत की आग में झोंक दिया... कितने युवा उस समय आत्मदाह कर के मर गए... कितने आपस में लड़ के मर गए...... तभी वो कुत्ता भी सड़ सड़ के मरा... ब्लड कैंसर से मौत हुयी उस खानदानी गद्दार की.....

तो भाईयों जांत पांत तो तुम लोग बनाये हुए हो.... अपने आप को दलित कहला कर कौन इसका फायदा उठा रहा है... सवर्ण..? कदापि नहीं... दलित ही बड़े शान से नौकरी के और अन्य सरकारी सुविधाओं के फॉर्म पे अपने आप को दलित लिखते हैं और पाने लगते हैं सरकारी भीख....

ऐसा नहीं है कि सारे दलित ऐसे हैं... दलितों में आज भी बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो आरक्षण का विरोध करता है क्यों कि वो सारे कर्मठ हैं... उन्होंने बिना आरक्षण का लाभ लिए हुए अपने आप को समाज में प्रतिष्ठित किया है.... खूब मेहनत की है और आज बहुत ऊँचे ऊँचे पदों पे हैं या बड़े बड़े व्यवसायों में लगे हैं...... उनके दुःख को समझो क्योंकि उनकी मेहनत की कोई कदर ही नहीं रही.... जो उन्हें ठीक से जानते हैं वो भी उनकी पीठ पीछे यही कहते हैं कि आरक्षण कोटे का इंसान है... यानी उनकी सारी मेहनत इस आरक्षण नामक जिन्न के पेट में पहुँच गई.... क्या दोष है उनका..? सिर्फ इतना कि उन्होंने मेहनत की और आरक्षण की बैसाखी के बिना अपनी मंजिल प्राप्त की.... आज वो कितना भी कहें कि उन्होंने कभी आरक्षण का लाभ नहीं लिया.. आम जनता नहीं मानती... उनको भी सब उसी हेय दृष्टि से देखते हैं जैसे कि बाकी सभी आरक्षण पाने वालो को देखते हैं..... उन्हें न्याय चाहिए..... आरक्षण का समर्थन सिर्फ वही करते हैं जो अकर्मण्य हैं... जिन्हें बैठे बिठाये हलुआ चाहिए.... काम न करना पड़े, मेहनत न करनी पड़े और दोनों हाथों में लड्डू आ जाएँ.. ऐसी सोच वाले ही आरक्षण का समर्थन करते हैं... और नेताओं को तो चाहिए यही क्यों कि यदि आप आपस में बँटते नहीं रहेंगे तो उनकी नेता गिरी कैसे चलेगी.....

आरक्षण का जो भी कारण दिया जाता है उसे कुछ कुछ समझने वाले भी इस समाज में अब अधेड़ की उम्र पार कर गए हैं और थोड़े वर्षों बाद परलोक सिधार जायेंगे... उसके बाद की पीढ़ी आरक्षण का कारण नहीं समझती क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी जांत पांत का भेद भाव देखा ही नहीं... तो वो इसका खामियाजा क्यों भुगतना चाहेगी... और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि फिर से सडकों पे खून बहेगा.... जब ज्यादा त्रस्त हो जायेंगे सामान्य वर्ग के बच्चे कि मेहनत कर कर के थक जायेंगे और मलाई आरक्षण वाले ले जायेंगे और वो बेचारे ठूंठ से बैठे रह जाएंगे तो उठ खड़े ही होंगे कि इस पार या उस पार..... तब क्या होगा..... अपने ही लोग अपने ही लोगो का रक्त बहाएंगे और ये नेता तो उसपे भी राजनीति की रोटियां सेकेंगे......

ऐसा होने से पहले ही आरक्षण समर्थक यदि चेत जाएँ तो अच्छा होगा क्यों कि यदि रक्त पात हुआ तो जांत पांत और ज्यादा गहरी पकड़ बना लेगा समाज में और फिर सदियों तक इसका इलाज़ नहीं हो पायेगा..... आरक्षण से किसी का भला नहीं हुआ है... जिन्होंने इसका सहारा लिया है वो भी अपमान का घूंट गाहे बगाहे सहते ही रहते हैं..... और इस सबसे राष्ट्र का विकास प्रभावित होता है.... आप भी हमारे साथ मिलिय और सरकार से बोलिये कि सही व्यवस्था प्रदान करें.... गरीबों को मुफ्त शिक्षा और पुस्तकें दे और उसके बाद का सारा आरक्षण समाप्त करें... तभी एक सर्वरूप से विकसित भारत का उदय हो पायेगा... आधे अधूरे भारत के विकास का कोई अर्थ नहीं है.... किसी भी कोने में पड़ी गरीबी और अव्यवस्था हर तरह के विकास को निगल ही जाएगी...

माननीय प्रधानमंत्री महोदय को इसपे विचार करने की बहुत अधिक आवश्यकता है..... नहीं तो वो दिन दूर नहीं कि उनकी इतनी अथक मेहनत के बावजूद राष्ट्र फिर उसी गन्दगी में धंस जायेगा जहा से वो उसे निकालने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं.... गृह युद्ध छिड़ जायेगा और उनके विरोधी मजे लेंगे.. सरे आम रक्तपात होगा और इस सबका कलंक प्यारे प्रधान मंत्री जी के सर होगा.... उनके विरोधी तो चाहते यही हैं..... क्योंकि और किसी तरीके से वो उनसे जीत नहीं पा रहे है तो दंगा और रक्त पात ही सही..... दोस्तों इसे इतना शेयर करें कि ये आवाज़ प्रधानमंत्री जी के कानो तक पहुँच पाए और वो सही बात समझ सकें..... जय हिन्द.. जय भारती...... मनोज कुमार पाण्डेय