Sunday, September 11, 2016

आरक्षण और विकास - दो धुर विरोधी तत्त्व

दोस्तों यदि आरक्षण रहेगा तो विकास हो ही नहीं सकता.. हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी क्या कहना चाहते हैं आरक्षण का समर्थन करके कि आरक्षण की व्यवस्था बनाये रखते हुए हम विकास करेंगे..?.... असंभव ... ऐसा हो ही नहीं सकता.... जब तक हर पद पर योग्य अधिकारी और कर्मचारी नहीं बैठा होगा विकास संभव ही नहीं है.... हम आरक्षण भी बनाये रक्खेंगे और विकास भी करेंगे... ये तो बच्चों में रेवड़ी बांटने वाली बात हो गई...... अयोग्य कर्मियों को रख के किसके विकास की बात हो रही है......

आरक्षण हो.. पर मात्र पढ़ाई में... और उसमे भी पढ़ाई के संसाधनों में न कि परीक्षा परिणामो में... उसके आगे कहीं भी आरक्षण नहीं होना चाहिए.... ये आत्मघाती व्यवस्था है और जितने दिन भी चालू रहेगी... सिर्फ खोना ही खोना है.. पाना कुछ भी नहीं.....

आरक्षण समर्थक बड़े जोर शोर से कहते हैं कि आरक्षण का विरोध क्यों करते हो.. जांत पांत का क्यों नहीं करते.... मैं उन सब से पूछना चाहता हूँ कि एक विस्तृत रूप में देख के बताइये कि जांत पांत रह कहा गया है.... सन 1985 तक ही करीब करीब ख़तम हो गया था.... गद्दार वी पी सिंह यदि मंडल कमंडल न लाया होता तो आज तक तो जांत पांत इतिहास की बातें बन चुका होता..... उस कमीने इंसान ने अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण पूरे भारत को नफरत की आग में झोंक दिया... कितने युवा उस समय आत्मदाह कर के मर गए... कितने आपस में लड़ के मर गए...... तभी वो कुत्ता भी सड़ सड़ के मरा... ब्लड कैंसर से मौत हुयी उस खानदानी गद्दार की.....

तो भाईयों जांत पांत तो तुम लोग बनाये हुए हो.... अपने आप को दलित कहला कर कौन इसका फायदा उठा रहा है... सवर्ण..? कदापि नहीं... दलित ही बड़े शान से नौकरी के और अन्य सरकारी सुविधाओं के फॉर्म पे अपने आप को दलित लिखते हैं और पाने लगते हैं सरकारी भीख....

ऐसा नहीं है कि सारे दलित ऐसे हैं... दलितों में आज भी बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो आरक्षण का विरोध करता है क्यों कि वो सारे कर्मठ हैं... उन्होंने बिना आरक्षण का लाभ लिए हुए अपने आप को समाज में प्रतिष्ठित किया है.... खूब मेहनत की है और आज बहुत ऊँचे ऊँचे पदों पे हैं या बड़े बड़े व्यवसायों में लगे हैं...... उनके दुःख को समझो क्योंकि उनकी मेहनत की कोई कदर ही नहीं रही.... जो उन्हें ठीक से जानते हैं वो भी उनकी पीठ पीछे यही कहते हैं कि आरक्षण कोटे का इंसान है... यानी उनकी सारी मेहनत इस आरक्षण नामक जिन्न के पेट में पहुँच गई.... क्या दोष है उनका..? सिर्फ इतना कि उन्होंने मेहनत की और आरक्षण की बैसाखी के बिना अपनी मंजिल प्राप्त की.... आज वो कितना भी कहें कि उन्होंने कभी आरक्षण का लाभ नहीं लिया.. आम जनता नहीं मानती... उनको भी सब उसी हेय दृष्टि से देखते हैं जैसे कि बाकी सभी आरक्षण पाने वालो को देखते हैं..... उन्हें न्याय चाहिए..... आरक्षण का समर्थन सिर्फ वही करते हैं जो अकर्मण्य हैं... जिन्हें बैठे बिठाये हलुआ चाहिए.... काम न करना पड़े, मेहनत न करनी पड़े और दोनों हाथों में लड्डू आ जाएँ.. ऐसी सोच वाले ही आरक्षण का समर्थन करते हैं... और नेताओं को तो चाहिए यही क्यों कि यदि आप आपस में बँटते नहीं रहेंगे तो उनकी नेता गिरी कैसे चलेगी.....

आरक्षण का जो भी कारण दिया जाता है उसे कुछ कुछ समझने वाले भी इस समाज में अब अधेड़ की उम्र पार कर गए हैं और थोड़े वर्षों बाद परलोक सिधार जायेंगे... उसके बाद की पीढ़ी आरक्षण का कारण नहीं समझती क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी जांत पांत का भेद भाव देखा ही नहीं... तो वो इसका खामियाजा क्यों भुगतना चाहेगी... और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि फिर से सडकों पे खून बहेगा.... जब ज्यादा त्रस्त हो जायेंगे सामान्य वर्ग के बच्चे कि मेहनत कर कर के थक जायेंगे और मलाई आरक्षण वाले ले जायेंगे और वो बेचारे ठूंठ से बैठे रह जाएंगे तो उठ खड़े ही होंगे कि इस पार या उस पार..... तब क्या होगा..... अपने ही लोग अपने ही लोगो का रक्त बहाएंगे और ये नेता तो उसपे भी राजनीति की रोटियां सेकेंगे......

ऐसा होने से पहले ही आरक्षण समर्थक यदि चेत जाएँ तो अच्छा होगा क्यों कि यदि रक्त पात हुआ तो जांत पांत और ज्यादा गहरी पकड़ बना लेगा समाज में और फिर सदियों तक इसका इलाज़ नहीं हो पायेगा..... आरक्षण से किसी का भला नहीं हुआ है... जिन्होंने इसका सहारा लिया है वो भी अपमान का घूंट गाहे बगाहे सहते ही रहते हैं..... और इस सबसे राष्ट्र का विकास प्रभावित होता है.... आप भी हमारे साथ मिलिय और सरकार से बोलिये कि सही व्यवस्था प्रदान करें.... गरीबों को मुफ्त शिक्षा और पुस्तकें दे और उसके बाद का सारा आरक्षण समाप्त करें... तभी एक सर्वरूप से विकसित भारत का उदय हो पायेगा... आधे अधूरे भारत के विकास का कोई अर्थ नहीं है.... किसी भी कोने में पड़ी गरीबी और अव्यवस्था हर तरह के विकास को निगल ही जाएगी...

माननीय प्रधानमंत्री महोदय को इसपे विचार करने की बहुत अधिक आवश्यकता है..... नहीं तो वो दिन दूर नहीं कि उनकी इतनी अथक मेहनत के बावजूद राष्ट्र फिर उसी गन्दगी में धंस जायेगा जहा से वो उसे निकालने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं.... गृह युद्ध छिड़ जायेगा और उनके विरोधी मजे लेंगे.. सरे आम रक्तपात होगा और इस सबका कलंक प्यारे प्रधान मंत्री जी के सर होगा.... उनके विरोधी तो चाहते यही हैं..... क्योंकि और किसी तरीके से वो उनसे जीत नहीं पा रहे है तो दंगा और रक्त पात ही सही..... दोस्तों इसे इतना शेयर करें कि ये आवाज़ प्रधानमंत्री जी के कानो तक पहुँच पाए और वो सही बात समझ सकें..... जय हिन्द.. जय भारती...... मनोज कुमार पाण्डेय

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